धीरे-धीरे ब्लॉग-परिवार बढ़ता जा रहा है यह देखकर बहुत ख़ुशी होती है.नाम और चेहरे से काफी लोगों को पहचानने लगी हूँ यह मेरे लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. जाने-अनजाने लेखकों और पाठकों की स्नेहिल प्रतिक्रियाएं किसी खजाने से कम नहीं लगते. एक ऋण है आपका मुझपर जिसे उतारना संभव ही नहीं है......परस्पर का यह सद्भाव कभी धूमिल नहीं हो,हम सब एक-दूसरे की कविताओं,कहानियों और लेखों से जुड़े रहें.....बस और क्या चाहिए......
नीम के पत्ते
यहाँ
दिन-रात गिरकर,
चैत के आने का हैं
आह्वान
करते,
रात छोटी
दोपहर
लम्बी ज़रा
होने लगी है.
पेड़ से
इतने गिरे पत्ते
कि
दुबला
हो गया है
नीम,
जो पहले
घना था ,
टहनियों के
बीच से,
दिखने लगा
आकाश ,
दुबला
हो गया है
नीम
जो पहले
घना था.
क्यारियों से फूल पीले,
अब विदा
होने लगे हैं,
और गुलमोहर पे पत्ते
अब सुनो.....
लगने लगे हैं,
शीत जो लगभग
गया था,
मुड़के वापस
आ गया है,
विदा का फिर
स्नेहमय,
स्पर्श देने
आ गया है.
इन दिनों
चिड़ियों का आना
बढ़ गया है,
घोंसले बनने लगे हैं,
घास ,तिनके
चोंच में
दिखने लगे हैं.
पेड़ की हर डाल पे,
लगता कोई मेला
कि
किलकारी यहाँ
पड़ती सुनायी ,
घास पर लगता
कि
पत्तों की कोई
चादर बिछाई ,
हवा में फैली
मधुर ,मीठी ,वसंती
महक ,
अब जाने लगी है,
चैत की चंचल
हवा में, चपलता चलने
लगी है.
सूर्य की किरणें सुबह,
जल्दी ज़रा
आने लगीं हैं,
धूप की नरमी पे,
गरमी का दखल
चढ़ने लगा है.
शाम होती देर से
कि
दोपहर
लम्बी ज़रा,
होने लगी है,
रात में
कुछ देर तक
अब,
चाँद भी
रहने लगा है .
............और यहाँ की
हर ज़रा सी
बात या बेबात में,
याद तुम आती
बहुत हो
हर सुबह
दिन-रात में.
तुम्हारी मम्मी
बेहतरीन कविता! नीम के पत्ते से बहुत कुछ याद आ गई...
ReplyDeletebahut bahut bahut badhiyaa...
ReplyDeleteसुन्दर रचना .....प्रकृति माध्यम से भावों का प्रकटीकरण मनमोहक लगा |
ReplyDeleteपतझड़ का बढिया आलेखन
ReplyDeleteकमाल की अभिव्यक्ति है………सारे मौसम ,सारे रंग सभी समा गये है।
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति -
ReplyDeleteएक एक शब्द में एहसास कूट कूट कर भरा है -
तजुर्बा भी झलक रहा है -
बहुत ही सुंदर -
बधाई -इतनी सुंदर कविता के लिए.
नन्हीं-नन्हीं पंक्तियों में लय और भावों का एक सम्मोहन सा बुनती, मौसम का हाल सुनाती, बिटिया के नाम पाती पढ़कर बहुत अच्छा लगा !
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत भावमय करते शब्द ....।
ReplyDelete,
ReplyDeleteअब जाने लगी है,
चैत की चंचल
हवा में, चपलता चलने
लगी है.
सूर्य की किरणें सुबह,
जल्दी ज़रा
आने लगीं हैं,
धूप की नरमी पे,
गरमी का दखल
चढ़ने लगा है...
बेहतरीन प्रकृति चित्रण । बेटी की याद ने उम्दा कविता का सृजन करवा दिया । -बधाई।
.
प्रकृति का बहुत सुन्दर शब्दचित्र उकेरा है...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteमृदुला जी,
ReplyDeleteशानदार.....बहुत ही खूबसूरत अहसासों में बसी पोस्ट....
............और यहाँ की
ReplyDeleteहर ज़रा सी
बात या बेबात में,
याद तुम आती
बहुत हो
हर सुबह
दिन-रात में.
प्रकृति का बहुत सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया है आपने शब्दों के माध्यम से ... बेटी को याद करते हुए बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना का सृजन ..
बदलते मौसम की पाती बेटी की यादों को समेट कर जीवंत हो उठी है !
ReplyDeletevakai bahut badhiya rachna.....
ReplyDeletebahut sunder lagi.
उफ्फफ्फ्फ़...क्या कहूँ...अद्भुत कविता है आपकी...विषय और प्रस्तुति दोनों एक दम ताजगी भरी...बधाई स्वीकारें..
ReplyDeleteनीरज
vry touching.....only a mom can share such feeling to her daughter ....lv u mamma.....
ReplyDelete.और यहाँ की
ReplyDeleteहर ज़रा सी
बात या बेबात में,
याद तुम आती
बहुत हो
हर सुबह
दिन-रात में.
प्रकृति के साथ जुड कर कितनी ही बातें यूँ याद हो आना ...बहत संवेदनशील रचना
पतझड, सावन, बसंत-बहार.
ReplyDeleteलगता है सभी रंग आपके इन नीम के पत्तों के साथ दिख रहे हों ।
खूबसुरत प्रस्तुति । आभार...
बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति है.
ReplyDeleteसलाम
• बिल्कुल नए सोच और नए सवालों के साथ समाज की मौजूदा जटिलताओं को उजागर किया है ।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना, धन्यवाद
ReplyDeleteheart touching poem
ReplyDeleteबदलते मौसम में ममता की यादें, एक बेहतरीन अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteनीम की निपात हो रही पत्तियों ने आपसे यह पाती लिखवा दी, बिटिया के नाम ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
वाह बेटी को इतनी प्यारी नज़्म .....?
ReplyDeleteपरस्पर का यह स्नेह सद्भाव कभी धूमिल नहीं होगा ....
निश्चिंत रहे .....!!
किलकारी यहाँ
ReplyDeleteपड़ती सुनायी ,
घास पर लगता
कि
पत्तों की कोई
चादर बिछाई ,
हवा में फैली
मधुर ,मीठी ,वसंती
महक ,....
बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी
खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
आदरणीया मृदुला जी इस कविता की लयात्मकता बहुत ही प्रभावित करती है| बधाई|
ReplyDeleteखूबसूरत अहसासों में बसी.....खूबसूरत रचना
ReplyDeleteदुबला
ReplyDeleteहो गया है
नीम,
जो पहले
घना था
Kya baat hai
Beautiful.
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