कि दिल मेरा लगता नहीं
ऐसी जगह तुम ले चलो अब,
आ रही हो जँहा तिरती,
किसी कानन-कुँज से
होकर हवायें –
दूब हो मखमल सी
तलवों को छुयें जब,
देखूं जब सर को उठाकर
आसमां के बीच हो,
किरणों का मेला,
शीत की लघुतम दुपहरी
को विदा कर,
सांध्य को
चिड़ियों का कलरव
करते जाना,
दूर लंबे-सघन वृक्षों
के साये में,
छवि हो बस चाँद की
झिलमिल सी करती,
बह रही हो
पास ही,
कोई नदी-झरने को छूकर
कि दिल मेरा लगता नहीं
ऐसी जगह तुम ले चलो अब.
Saturday, August 29, 2009
Wednesday, August 19, 2009
वह ममता .....
वह ममता कितनी प्यारी थी ,
वह आँचल कितना सुन्दर था,
जिसके कोने कि गिरहों में
थी मेरी ऊँगली बंधी हुई .
उस आँचल की उन गिरहों में
बस,अपनी सारी दुनिया थी.....
वह आँचल कितना सुन्दर था,
जिसके कोने कि गिरहों में
थी मेरी ऊँगली बंधी हुई .
तब .......
बीत्ते भर की खुशियाँ थी,
ऊँगली भर की आकांछा थी ,उस आँचल की उन गिरहों में
बस,अपनी सारी दुनिया थी.....
Wednesday, August 12, 2009
माँ सरस्वती........
मणि-माला धारण किये ,
कर-कमलों में
वीणा लिये,
हंस के सिंहासन पर
विराजती
माँ सरस्वती,
दे देना ...
वरदान,
एक ऐसी
विलक्षण शक्ति का
जो
भरती रहे स्फूर्ति ,
सहज ही
मेरे तन-मन में .
कर देना सराबोर
एक ऐसी
भक्ति से ,
जो
जागृत रखे
मेरी चेतना को ,
असीम
संतुष्टि से ।
जगाये रखना
मेरे मन में,
निर्भय विश्वास का
मन-वांछित
उल्लास,
आप्लावित
करते रहना
मेरे विवेक को,
अपनी
सुदृढ़ क्षमताओं के
वरद
हस्त से ,
तुम्हारे
आलौकिक प्रकाश के
माध्यम से ,
सुगम होती रहे,
मेरी
जटिलतायें ,
तुम्हारी
सौहार्दता का अंकुश ,
तेज धार बनकर,
तराशती रहे
मेरी
अनुभूतियों को,
अचिन्त्य रहे
मेरी भावनाओं में ,
तुम्हारा
कोमल स्पर्श,
आभारित रहे ,
मेरे अंतर्मन का
पर्त्त दर-पर्त्त,
तुम्हारी
अनुकंपाओं से
और
सुना सकूँ
तुम्हे ,
जीवन भर,
कविताओं में भरकर,
तुम्हारे दिये हुये
शब्दों के पराग,
तुमसे मिली
आस्थाओं की
पंखुड़ियाँ
और
तुम्हारे स्वरों से
मुखरित ,
अनगिनत
गुलाब .
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