Wednesday, July 25, 2012

कतय स्वतंत्रता-दिवस गेल........


कतय स्वतंत्रता-दिवस गेल,
झंडा क गीत 
कतय सकुचायेल,
दृश्य सोहनगर,देखबैया
छथि 
कतय नुकाएल.
लालकिला आर कुतुबमिनारक
के नापो ऊँचाई,
चिड़ियाघर जंतर-मंतर क 
छूटल 
आबा-जाही.
पिकनिक क पूरी-भुजिया 
निमकी,दालमोट,
अचार,
कलाकंद,लड्डुक डिब्बा लय 
मित्र,सकल परिवार.
कागज़ के छिपी-गिलास,
थर्मस  में 
भरि-भरि चाय,
दुई-चारि टा शतरंजी वा
चादर लिय 
बिछाए.
ई सबहक दिन 
बीति गेल 
आब  
 'मॉल' आर 'मल्टीप्लेक्स',
दही-चुड़ा छथि मुंह 
बिधुऔने,
घर -घर बैसल 
'कॉर्न-फ्लेक्स'.
'कमपिऊटर' पीठी पर 
लदने
मुठ्ठी में 'मोबाइल',
अपने में छथि 
सब केओ बाझल 
यैह नबका 
'स्टाइल'
 

Wednesday, July 11, 2012

सकते में है जामुन.......कि

सकते में है 
जामुन.......कि 
ये कैसा बदलाव है,
ये कैसी आंधी है,
ये कौन सा युग है......
हम तो अपने-आप ही 
रस से 
भर-भरकर 
चूते थे,
बारिश में इतराते,
पकते,
टपकते थे,
आते-जाते मुसाफिर 
हमें 
उठाते,खाते,
मुस्कुराते,
निकल जाते थे
और 
बैगनी रंग का जीभ 
एक-दूसरे को 
दिखा,
खिलखिलाते थे.
कितना सुहाना लगता था......
सबका मन लुभाना,
सब पर छा जाना,
सबका दुलार पाना......फिर 
ये क्या हुआ 
जो हम,
बड़े एहतियात से
चुने जाते हैं,
गिने जाते हैं,
'लेवल'लगे डब्बों में 
'पैक' किये जाते हैं.....और 
जाने कहाँ-कहाँ 
भेजे जाते हैं.
छप जाता है 
डब्बों पर,
'प्राईस-टैग' के साथ 
हमारी तस्वीर......और 
वीरान 
हो जाती है,
वर्षों से
सड़कों के किनारे 
उगाई हुई,
भाईचारे कि खेती.
गुमशुदा........हम
कुलबुलाते हैं,
छटपटाते  हैं,
'कहीं का नहीं छोड़ा',
बुदबुदाते  हैं.
सुना है......... सड़कों पर 
लोगों से,
देश तरक्की कर रहा है,
आगे बढ़ रहा है,
ये 'प्रगति' है......लेकिन 
जनाब,
एक अदना सा 
व्यक्तित्वधारी मैं 
भयभीत हूँ......
मेरी तो सरासर 
'दुर्गति' है.
गुज़ारिश है आपसे.....
हुकूमत के 
ऊँचे तबकों में,
एक छोटी सी सिफारिश 
कर दीजियेगा,
मैं प्रजा का सेवक हूँ,
दिल्ली की सड़कों पर 
खुले-आम 
रहने की, इज़ाजत
दिला दीजियेगा.