आज..
नींद की उगाही पर
चलते हैं ..
रह गयी थी जो
जरा सी बेध्यानी में
कुर्सी के हथ्थों पर ..
जल्दबाज़ी में थोड़ी सी
पुराने सोफे के
गद्दों पर ..
आँगन में धूप से
पटी चारपाई पर
ठहर गयी थी ..
चौखट से लगी
चटाई पर
बिखर गयी थी ..
जिम्मे जो लगाई थी
खिड़की पर
हवा को एक रोज़..
रखी थी रास्ते लिये
सामान के साथ
जो चलते वख़्त ..
साँझ की जुगाली में
जुटे हुये
लम्हों से ..
और ..
पलकों को घेरकर बैठी हुई
तीसरे पहर के
उजालों से ..
नींद की उगाही
करते हैं ..
आज..
नींद की उगाही पर
चलते हैं ..
नींद की उगाही पर
चलते हैं ..
रह गयी थी जो
जरा सी बेध्यानी में
कुर्सी के हथ्थों पर ..
जल्दबाज़ी में थोड़ी सी
पुराने सोफे के
गद्दों पर ..
आँगन में धूप से
पटी चारपाई पर
ठहर गयी थी ..
चौखट से लगी
चटाई पर
बिखर गयी थी ..
जिम्मे जो लगाई थी
खिड़की पर
हवा को एक रोज़..
रखी थी रास्ते लिये
सामान के साथ
जो चलते वख़्त ..
साँझ की जुगाली में
जुटे हुये
लम्हों से ..
और ..
पलकों को घेरकर बैठी हुई
तीसरे पहर के
उजालों से ..
नींद की उगाही
करते हैं ..
आज..
नींद की उगाही पर
चलते हैं ..