अन्ना जी के मस्तक पर
अभिषेक
उषा की लाली से,
कुंदहार, नीलाभ वसन
शोभित ललाट,
उजियाली से.
मलय-गिरी के
सुमल अनिल से ,
दसों दिशाओं के
जल-थल से,
दुग्ध-धवल पर्वत शिखरों
से ,
मंदिर से, मस्ज़िद,
गिरिजों से.
दूर छितिज के
आकर्षण से,
गुरुद्वारे के ऊँचे
ध्वज से,
शंखनाद
ध्वनि के गुंजन से,
झरनों के अति
मीठे जल से.
नव अंकुर के
कोमल दल से,
नव प्रकाश की
मृदु आहट से ,
कोने-कोने के
कलरव से,
कलियों-कलियों के
सौरभ से.
अन्ना जी के मस्तक पर
अभिषेक
ओस की डाली से,
सागर के
अमृत कलशों से,
नए धन की
बाली से..........