एक दिन
अकेली मैं उदास,
बुलाने बैठी
आसमान में उड़ते हुए
चिड़ियों को ,
चिड़ियों ने कहा....
'रात होनेवाली है
घर जाने की
जल्दी है'.
सूरज को गोद में लिए
पश्चिम की लाली से
बोली मैं,
कुछ देर के लिए
मेरे पास
आओ तो ,
'विदा करनी है
सूरज को,
कैसे आऊंगी इस वख्त
कहो तो?'
थोड़ी ही देर बाद
आहट हुई
रात के आने की,
दरवाज़े पर ही
खड़ी-खड़ी
रोकने लगी रात को
कि
ठहर कर जाना ,
'अभी-अभी आयी हूँ '
रात ने कहा......
'मुश्किल है इन दिनों
बरसता है शबनम
सारी-सारी रात
भींगने का मौसम है'.
चाँद से बोली,
आओ सितारों के साथ
कुछ बात करें ,
चाँद ने कहा......
'घूमना है तारों के साथ
आज की रात
कैसे बात करें?'.
फूलों,भौरों ,तितलियों ने
रचाया था
उत्सव,
स्वच्छंद विचरते हुए
मेघ-मालाओं ने कहा........
'बरसना है अभी और',
हवाओं को जाना था
खुशबू लेकर
दूर-दराज़,
नदियों,झीलों को
करनी थी अठखेलियाँ ,
और
पहाड़ पर जमी हुई
बर्फ़ ने कहा.......
'बहुत दूर है
तुम्हारा घर'.
झरनों से गिरता हुआ
कल-कल,
दूबों पर फैली
हरियाली,
ताड़,खजूर ,युक्लिप्टस
और
चिनारों ने
सुना दी
अपनी-अपनी......
और हारकर कहा मैंने
अपने मन से,
तुम मेरे पास रहना........
'मुझे नहीं रहना'
झुँझलाकर बोला
मेरा अपना ही मन,
'मैं जा रहा हूँ
बच्चों के पास
आ जाऊँगा
मिल-मिलाकर,
'तुम यहीं रहो'.......
लेकिन
कितने दिन हो गए
मन तो
लौटा ही नहीं......
मेरे बच्चों,
तुमलोग ऐसा करना,
वापस भेज देना
समझा-बुझाकर
मेरा मन
कि
मैं यहाँ
अकेली रह गयी हूँ........
अकेली मैं उदास,
बुलाने बैठी
आसमान में उड़ते हुए
चिड़ियों को ,
चिड़ियों ने कहा....
'रात होनेवाली है
घर जाने की
जल्दी है'.
सूरज को गोद में लिए
पश्चिम की लाली से
बोली मैं,
कुछ देर के लिए
मेरे पास
आओ तो ,
'विदा करनी है
सूरज को,
कैसे आऊंगी इस वख्त
कहो तो?'
थोड़ी ही देर बाद
आहट हुई
रात के आने की,
दरवाज़े पर ही
खड़ी-खड़ी
रोकने लगी रात को
कि
ठहर कर जाना ,
'अभी-अभी आयी हूँ '
रात ने कहा......
'मुश्किल है इन दिनों
बरसता है शबनम
सारी-सारी रात
भींगने का मौसम है'.
चाँद से बोली,
आओ सितारों के साथ
कुछ बात करें ,
चाँद ने कहा......
'घूमना है तारों के साथ
आज की रात
कैसे बात करें?'.
फूलों,भौरों ,तितलियों ने
रचाया था
उत्सव,
स्वच्छंद विचरते हुए
मेघ-मालाओं ने कहा........
'बरसना है अभी और',
हवाओं को जाना था
खुशबू लेकर
दूर-दराज़,
नदियों,झीलों को
करनी थी अठखेलियाँ ,
और
पहाड़ पर जमी हुई
बर्फ़ ने कहा.......
'बहुत दूर है
तुम्हारा घर'.
झरनों से गिरता हुआ
कल-कल,
दूबों पर फैली
हरियाली,
ताड़,खजूर ,युक्लिप्टस
और
चिनारों ने
सुना दी
अपनी-अपनी......
और हारकर कहा मैंने
अपने मन से,
तुम मेरे पास रहना........
'मुझे नहीं रहना'
झुँझलाकर बोला
मेरा अपना ही मन,
'मैं जा रहा हूँ
बच्चों के पास
आ जाऊँगा
मिल-मिलाकर,
'तुम यहीं रहो'.......
लेकिन
कितने दिन हो गए
मन तो
लौटा ही नहीं......
मेरे बच्चों,
तुमलोग ऐसा करना,
वापस भेज देना
समझा-बुझाकर
मेरा मन
कि
मैं यहाँ
अकेली रह गयी हूँ........