दिनकर जी के
बारे में,
जितना लिख दूं
वह कम है,
'रश्मिरथी','कुरुछेत्र'
पढ़ी थी,
अब तक आँखें
नम हैं.
जन-जीवन,ग्रामीण ,
सहज,
कितना गहरा
स्वाध्याय,
दिए अमूल्य ,अतुल
वैभव
'संस्कृति के चार अध्याय '.
'हरे को हरिनाम ',
'उर्वशी '
पढ़कर नहीं अघाते,
श्रोता हों या
वक्ता हों,
हर पंक्ति को
दोहराते.
संसद में रहकर भी
सत्ता,
जिनको नहीं लुभाया,
दिनकर जी को मिला,
पढ़ा जो,
अब तक नहीं
भुलाया.
कृतियों का
प्रज्ज्वल प्रकाश,
उत्कर्ष,
कलम का थामे ,
भारत की
गौरव-गाथा में,
राष्ट्र-कवि हैं आगे.
ऋणी रहेगा
'ज्ञानपीठ',
हिंदी का नभ
सम्मानित,
नमन उन्हें शत बार
ह्रदय यह,
बार-बार गौरवान्वित .