Tuesday, February 26, 2013

चाय......

आज सुबह में 
चाय नहीं 
कुछ ठीक बनी थी, 
दूध ज़रा ज्यादा था 
या 
कि चीनी खूब पड़ी थी 
या फिर शायद 
उलझन कोई 
मन में हुई 
खड़ी थी, 
आज सुबह में 
चाय नहीं 
कुछ ठीक बनी थी. 
चाय की पत्ती 
कम थी 
या 
कि रंग नहीं आया था 
या फिर शायद 
नींद लगी थी 
मन कुछ अलसाया था, 
आज सुबह में 
चाय नहीं 
कुछ ठीक बनी थी.

Tuesday, February 12, 2013

सूरज की पहली किरण से........


सूरज की पहली किरण से
नहाकर तुम 
और 
गूँथकर चाँदनी को 
अपने
 बालों में ,मैं 
चलो स्वागत करें ,
ऋतु-वसंत का .......
आसमान की भुजाओं में 
थमा दें ,
पराग की झोली 
और 
दूर-दूर तक उड़ायें ,
मौसम का गुलाल.
रच लें 
हथेलियों पर ,
केशर की पंखुड़ियाँ,
बांध लें 
सांसों में,जवाकुसुम की 
मिठास ,सजा लें 
सपनों में 
गुलमोहर के चटकीले 
रंग ,
बिखेर लें कल्पनाओं में,
जूही की कलियाँ ......कि
 ऋतु-वसंत है .......
सूरज की पहली किरण से 
नहाकर तुम 
और 
गूँथकर चाँदनी को 
अपने 
बालों में, मैं 
चलो स्वागत करें.
हवाओं के आँचल पर 
खोल दें
ख्वाबों के पर ,
तरु-दल के स्पंदन से 
आकांछाओं के
जाल बुनें ,
झूम आयें गुलाब के 
गुच्छों पर,
नर्म पत्तों की 
महक से चलो, कुछ 
बात करें.
आसमानी उजालों में 
सोने की धूप 
छुयें,
मकरंद के पंखों से,
कलियों को 
जगायें....कि
ऋतु-वसंत है.......
सूरज की पहली किरण से 
नहाकर तुम 
और 
गूँथकर चाँदनी को 
अपने 
बालों में, मैं 
चलो स्वागत करें.
  

Monday, February 4, 2013

ऋतुराज वसंत की गलियन में .........

यह कविता लगभग पच्चीस-तीस साल पहले, अपनी बेटियों को जगाने के लिए लिखी थी, हर साल वसंत- ऋतु में ज़रूर मन में घूमने लगती है.......

ऋतुराज वसंत की गलियन में
कोयल  रस-कूक   सुनावत हैं,
अधरों  पर   राग-विहाग लिए
अमरावाली  में,  इठलावट   हैं.
मधु-मदिरा पी, भ्रमरों के दल
कलियों  पर  जा  मंडरावत हैं,
मणि-माल लिए रश्मि-रथ पर
अब   भानु उदय को  आवत हैं . 
लखि   शोभा ऐसी  नैनन   सों
मृदु मन सबके   पुलकावत हैं,
पनघट जागी, जागी  चिड़िया
मेरी      गुड़िया  भी  जागत हैं.