Monday, April 19, 2010

पिता के बाद.........

बची हुई माँ
अचानक
कितनी निस्तेज
लगने लगती है.
एक नए प्रतिबिम्ब मे
तब्दील हुई
खुद को ही नहीं
पहचानती है,
बेरंग आँखों की
उदासी से
उद्वेलित मन को
बांधती है,
सुबह-शाम की
उँगलियाँ थामें
अपने-आप ही
संभलती है,
तूफान के प्रकोप को
समेटती हुई
रुक- रुक कर
चलती है.
सूनेपन को
जाने किस ताकत से
हटाती है,
यादों के प्रसून-वन में
हँसती-मुस्कुराती है,
भावनाओं के साथ
युद्ध करते हुए,
आँसुओं को
पी जाती है और
कभी कमज़ोर दिखनेवाली
माँ
अचानक
कितनी मजबूत
लगने लगती है.

Wednesday, April 7, 2010

तुम मेरी चिंता ........

तुम मेरी चिंता
मत करना ........
तुम्हारे साथ बिताये हुए
समय का
मैनें
'फिक्स -डिपोजिट'
करबा दिया है ,
इतने दिनों का
समेटा हुआ
प्यार,
इकठ्ठा करके
बैंक में
रखबा दिया है
और
इनसे आनेवाला
'इंटरेस्ट'
मेरे
जीवन-यापन के लिए
काफी है ,
तुम मेरी चिंता
मत करना ........
तुम्हारे बनाए हुए
सुख के
हिंडोले में ,
झूलती रहती हूँ ,
कभी हक़ीकत,
कभी
ख्वाबों के जाल
बूनती रहती हूँ ,
मीठी यादों का
मरहम,
दर्द के एहसास पर
लगा लेती हूँ,
तुम मेरी चिंता
मत करना,
मैं तो तुम्हारे
पास ही
रहती हूँ .

एक- दूसरे को ..........

एक- दूसरे को खुश देखने की
कोशिश में ,
हम
खुश रहते हैं .
समय के साथ -साथ,
एक-दूसरे को
चलाने के लिए,
हम
सप्रयास
चलते रहते हैं और
एक- दूसरे का
दर्द बाँटने के लिए ,
हम
अपना -अपना दर्द
पी लेते हैं.