रोज़मर्रा की छोटी-छोटी बातों में
जब ढूँढने लगी
खुशियाँ
तो लगा......
खुशियों की कोई
कीमत नहीं होती,
रद्दी से मिले
एक सौ अस्सी रूपये में
खुशी होती है,
मटर पच्चीस से बीस का
किलो
हो जाये
खुशी होती है,
'स्वीपर','माली''मेड '
'ड्राइवर'
समय से आयें
खुशी होती है,
आलू के पराठे पर
'बटर'
पिघल जाये
खुशी होती है,
चक्कर लगा घर के
कोने-कोने में
खुशी होती है,
'बुक-सेल्फ' से निकालकर
किताब
पढ़ने में
खुशी होती है,
पर्दे सही लग जाएँ
खुशी होती है,
'टेबल-क्लौथ' धुल जाएँ
खुशी होती है........तो
रोज़
बड़ी-बड़ी खुशियाँ
कहाँ मिलने वाली.....
चलो,इसी में
जी लिया जाये,
जाड़े का मौसम है
क्यों न
एक 'कप' गर्म चाय का
आनंद लिया जाये.
जब ढूँढने लगी
खुशियाँ
तो लगा......
खुशियों की कोई
कीमत नहीं होती,
रद्दी से मिले
एक सौ अस्सी रूपये में
खुशी होती है,
मटर पच्चीस से बीस का
किलो
हो जाये
खुशी होती है,
'स्वीपर','माली''मेड '
'ड्राइवर'
समय से आयें
खुशी होती है,
आलू के पराठे पर
'बटर'
पिघल जाये
खुशी होती है,
चक्कर लगा घर के
कोने-कोने में
खुशी होती है,
'बुक-सेल्फ' से निकालकर
किताब
पढ़ने में
खुशी होती है,
पर्दे सही लग जाएँ
खुशी होती है,
'टेबल-क्लौथ' धुल जाएँ
खुशी होती है........तो
रोज़
बड़ी-बड़ी खुशियाँ
कहाँ मिलने वाली.....
चलो,इसी में
जी लिया जाये,
जाड़े का मौसम है
क्यों न
एक 'कप' गर्म चाय का
आनंद लिया जाये.