Saturday, August 29, 2009

-कि दिल मेरा…….

कि दिल मेरा लगता नहीं

ऐसी जगह तुम ले चलो अब,

आ रही हो जँहा तिरती,

किसी कानन-कुँज से

होकर हवायें –

दूब हो मखमल सी

तलवों को छुयें जब,

देखूं जब सर को उठाकर

आसमां के बीच हो,

किरणों का मेला,

शीत की लघुतम दुपहरी

को विदा कर,

सांध्य को

चिड़ियों का कलरव

करते जाना,

दूर लंबे-सघन वृक्षों

के साये में,

छवि हो बस चाँद की

झिलमिल सी करती,

बह रही हो

पास ही,

कोई नदी-झरने को छूकर

कि दिल मेरा लगता नहीं

ऐसी जगह तुम ले चलो अब.

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