Monday, November 22, 2010

मेरे प्रवासी मित्र......

मेरे प्रवासी मित्र ,
तुम लौट क्यों नहीं आते  ?
तुमने जो बीज बोए थे .....
आम -कटहल के ,
फल दे रहे हैं सालों से .
चढ़ाई थी जो बेलें
मुंडेरों पर ,
कबकी फैल चुकी हैं ,
पूरी छत पर.
शेष होने को है ....
तुम्हारे भरे हुए ,
चिरागों का तेल , रंग
दीवारों पर ,
तस्वीरों की,
धुंधलाने सी लगी है.
तुम्हारे आने के
बदलते हुए,
दिन ,महीने और साल ,
मेरी उंगलिओं की पोरों पर
फिसलते हुए ,
तंग आ चुके हैं.
कोने -कोने में सहेजा हुआ
विश्वास ,
दम तोड़ने लगा है
कमज़ोर पड़ने लगी है,
पतंग की डोर पर
तुम्हारा चढाया माँझा.
तुम्हारी  चिठ्ठियों के
तारीखों की
बढती हुई चुप्पी ,
कैलेंडर के हर पन्ने पर,
हो रही है
छिन्न-भिन्न .
तुम्हारे आस्तित्व पर चढ़ा
स्वांत: सुखाय,
गूंजने लगा है
हज़ारों मील दूर से ........
फिर इस साल .
तुम्हारे समृध्दी की
तहों में ,
खोने लगा है ,
पिता का चेहरा
और
तुम्हारा यथार्थ
डूबने लगा है ,
तुम्हारी माँ के
गीले स्वप्नों में .......
मेरे प्रवासी मित्र ,
तुम लौट क्यों नहीं आते ?                                                       /

19 comments:

  1. मेरे प्रवासी मित्र ,
    तुम लौट क्यों नहीं आते........... ?
    ateet main jhankney ka khoobsurat andaaz or abhivyakti....
    abhaar.

    ReplyDelete
  2. तुम्हारा यथार्थ
    डूबने लगा है ,
    तुम्हारी माँ के
    गीले स्वप्नों में .......
    मेरे प्रवासी मित्र ,
    तुम लौट क्यों नहीं आते ?

    बहुत भावपूर्ण पंक्तियाँ .... उम्दा रचना

    ReplyDelete
  3. अप्रवासियों की अपनी अलग परेशानियाँ है, आना तो चाहते है वो लोग, पर बहुत सी बातें रोक लेती है उनको, बेचारे बस ऐसी कविताएँ पढ़ कर आहें भरते है ...

    लिखते रहिये ...

    ReplyDelete
  4. मन को छूने वाली पंक्तियाँ, लोग जहाँ भी रहें भूल कहाँ पाते हैं, अपनी मिट्टी की याद दिल के किसी कोने में बनी रहती है.

    ReplyDelete
  5. पिता का चेहरा
    और
    तुम्हारा यथार्थ
    डूबने लगा है ,
    तुम्हारी माँ के
    गीले स्वप्नों में ...

    बहुत अच्छी प्रस्तुति ....

    ReplyDelete
  6. मैं इस इंतेज़ार में था के घर मेरा पुकारे मुझको,
    और घर इस इंतेज़ार में कि वो आके बुहारे मुझको!

    ReplyDelete
  7. बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी कविता !

    ReplyDelete
  8. तुम्हारे समृध्दी की
    तहों में ,
    खोने लगा है ,
    पिता का चेहरा
    और
    तुम्हारा यथार्थ
    डूबने लगा है ,
    तुम्हारी माँ के
    गीले स्वप्नों में .......
    मेरे प्रवासी मित्र ,
    तुम लौट क्यों नहीं आते ?
    ...... गाँव-शहर से अपनों से सुदूर न जाने कितने घर-परिवार, सगे सम्बन्धी प्रवासी लोगों की राह ताकते रहते हैं, बातें करते रहते है.. अब आएगा.. तब आएगा.... कुछ याद करते हैं, आते-जाते हैं लेकिन कुछ भूल से जाते हैं ..
    बहुत भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना.. आभार

    ReplyDelete
  9. बेहतरीन रचना
    दिल को छू गयी

    www.deepti09sharma.blogspot.com

    ReplyDelete
  10. सच्चे दिल से निकली सच्ची पुकार!! ईश्वर करे यह पुकार सुनी जाए!!

    ReplyDelete
  11. तुमने जो बीज बोए थे .....
    आम -कटहल के ,
    फल दे रहे हैं सालों से .
    चढ़ाई थी जो बेलें
    मुंडेरों पर ,
    कबकी फैल चुकी हैं ,
    पूरी छत पर.
    शेष होने को है .

    fantastic is the only word i could get in the diictionary...
    very aptly conveyed the message...in a fluent and flowing rhyme!

    ReplyDelete
  12. ek ek shabd jhinjhor hi to gaya dil ko aur u dil kiya ki us pravasi mitr ko pakad hi laau kahin se aur laa ke kadmo me daal dun use uske pariwar ke.

    bahut bahut acchhi sashakt prastuti.

    ReplyDelete
  13. तुम्हारे समृध्दी की
    तहों में ,
    खोने लगा है ,
    पिता का चेहरा
    और
    तुम्हारा यथार्थ
    डूबने लगा है ,
    तुम्हारी माँ के
    गीले स्वप्नों में .......
    मेरे प्रवासी मित्र ,
    तुम लौट क्यों नहीं आते ?

    बहुत सुंदर रचना !

    ReplyDelete
  14. गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

    ReplyDelete
  15. kya kahun , padhkar is kavita ko kahan ko gaya ... man udaas sa ho gaya hai ..

    bahut sundar rachna

    badhayi

    vijay
    kavitao ke man se ...
    pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com

    ReplyDelete
  16. लौट आयें दूर बसने वाले...
    सुन्दर!

    ReplyDelete
  17. प्रतीक्षा में लीन भावना से ओत-प्रोत कविता
    कुछ पुरानी चीज़े मुझे भी याद आयी.
    ऐसी कविता लिखने के लिए धन्यवाद

    ReplyDelete
  18. bahut khubsurat rachna..........

    ReplyDelete