Tuesday, December 21, 2010

मरुभूमि कितना.........

'मरुभूमि
कितना सूना लगता है.......'
अनायास ही
निकल गया था
मुंह से ,
जब 'आबू-धाबी' के 
ऊपर से
'सूडान' जाने के लिए,
जहाज़ उड़ा था
और
नीचे 'सहारा डेज़र्ट'
उदास खड़ा था.
न कहीं पानी,
न कहीं हरियाली,
एकदम सन्नाटा
एकदम ख़ाली.
बात हो गयी थी
आई-गई,
बीस-बाईस साल में
मैं भी
भूल गई
पर
आज सुबह,
बाल झाड़ते हुए,
अवाक्
रह गई थी.........
'कितनी समानता है
मेरी आँखों में',
ख़ामोशी
रूककर
कह गई थी .

45 comments:

  1. उफ़! दर्द ही दर्द भर दिया आखिर मे।

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  2. 0ff kya likh gayee aap.......
    marmik samvedana.......

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  3. आपको पता है मरुभूमि में अब उपवन खिलने लगे हैं, मैं दो-तीन साल पहले ही गयी थी, आपकी आँखों में भी सागर लहरा रहा है आत्मा का !

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  4. आज सुबह,
    बाल झाड़ते हुए,
    अवाक्
    रह गई थी.........
    'कितनी समानता है
    मेरी आँखों में',
    ख़ामोशी
    रूककर
    कह गई थी .

    मृदुला जी वक़्त की बात करूँ या आपकी लेखनी की ....
    औरत रेगिस्तान की ख़ामोशी ही तो है .....

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  5. ओह , आँखों में मरुस्थल का दिखना ...उदास कर गया ..

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  6. नीचे 'सहारा डेज़र्ट'
    उदास खड़ा था.
    बाल झाड़ते हुए,
    अवाक्
    रह गई थी.........
    'कितनी समानता है
    मेरी आँखों में',...
    मन को व्यथित करते भाव

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  7. mridula ji main bhi awaak rah gaya...kaise aapne registaan ki khamoshi ko sabdo me samet liya:)

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  8. ... bhaavpoorn rachanaa ... prasanshaneey !!!

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  9. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (23/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  10. मृदुला जी , बहुत ही गहरे मर्म भरे है इस कविता में ........बहुत खूब
    .
    इंतजार

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  11. आज सुबह,
    बाल झाड़ते हुए,
    अवाक्
    रह गई थी.........
    'कितनी समानता है
    मेरी आँखों में',
    ख़ामोशी
    रूककर
    कह गई थी .
    ...yun hi jindagi ke raah chalte chalte apne tak ko kitna bhool sa jaata hai insaan..
    ..bahut kuchh bolti aapki rachna swayam ko sochne par majboor karti hai...

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  12. आह! बेहद खुबसूरत ...... aapko padhna sukhad lag raha hai ... aapko badhai

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  13. आपकी कविता ऐसे लगी जैसे मरुस्थल में नखलिस्तान . आभार .

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  14. 'कितनी समानता है
    मेरी आँखों में',
    ख़ामोशी
    रूककर
    कह गई थी

    सोचने पर विवश करती कविता.

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  15. Kya gazab likhtee hain aap! Wah!

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  16. मेरी आँखों में',
    ख़ामोशी
    रूककर
    कह गई थी .
    अतिसुन्दर भावाव्यक्ति , बधाई

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  17. मृदुला जी!
    अबू धाबी के ऊपर सहारा रेगिस्तान?? भूगोल के जानने वाले और मेरे जैसे वहाँ से होकर लौटे लोग बता देनेगे कि यह तथ्यपरक भूल है..हाँ बिम्बों के हिसाब से बात ठीक है.
    कविता में आपने जिस दर्द का वर्णन किया है वह स्पष्ट उभर कर आया है सामने..कम शब्दों में गहरा अर्थ लिए एक कविता!!

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  18. इक दर्द भरी कविता.. अच्छी लगी धन्यवाद

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  19. शुभ कामनाओं की कुछ हरियाली हमारी तरफ़ से आपको सादर प्रेषित ।

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  20. बहुत सुन्दर, बेहतरीन रचना !

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  21. वाकई ..सुन्दर अभिव्यक्ति .....

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  22. ADARNIYA MRIDULAJI,
    RACHNA KI AAKHIRI PANKTIYON NE KAVITA KA KAYAPALAT HI KAR DIYA..
    ATI SUNDAR!

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  23. गहन भावों की भावुक अभिव्यक्ति...वाह !!!

    मन मोह लिया...

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  24. mujhe bhi khamosh rahna hi sweekar hai in khamosh aankhon ke sang ...

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  25. वाह क्या बात है ... आपने बहुत सुन्दर तरीके से मन के रिक्तता के बारे में कहा है ...

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  26. Great. U have Superbly compared eyes to the desert.

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  27. भावपूर्ण रचना...
    रेत और आँखों की समानता भेदती हुई सी...!!!

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  28. सोचने पर विवश करती कविता.

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  29. गहन भावों का संगम है इन शब्‍दों में ....।

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  30. गहरी उदासी लिए कविता अचानक सभी सुखों पर प्रश्न चिन्ह लगा देती है ! आभार !

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  31. very touching . . . you have expressed your emotions so truly through these words . . .

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  32. कितनी समानता है
    मेरी आँखों में
    ख़ामोशी
    रूककर
    कह गई थी

    कविता का मर्म अत्यंत गहन है।
    आपके चिंतन को नमन।

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  33. क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
    आशीषमय उजास से
    आलोकित हो जीवन की हर दिशा
    क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
    जीवन का हर पथ.

    आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं

    सादर
    डोरोथी

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  34. कविता के भाव पक्ष ने मोहित कर दिया ........और हम हो गए आपके 75 वें समर्थक .....शुभकामनायें

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  35. bahut sundar kavita
    bhaav dil ko chhoote hain

    aabhaar

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  36. इस बिम्ब का बहुत सुन्दर प्रयोग है ।

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  37. सुन्दर भावपूर्ण रचना!!

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  38. मृदुला जी,

    वाह.....क्या बेहतरीन समानता है......बहुत खूब....सुन्दर पोस्ट|

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  39. व्यथा की बेहतरीन अभिव्यक्ति !

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  40. आज सुबह,
    बाल झाड़ते हुए,
    अवाक्
    रह गई थी.........
    'कितनी समानता है
    मेरी आँखों में',
    ख़ामोशी
    रूककर
    कह गई थी .

    बहुत ह्रदयस्पर्शी अभिव्यक्ति.मन को उद्वेलित कर देती है.

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  41. आँखों की ख़ामोशी से सहारा रेगिस्तान की याद ...
    बस उदास कर गयी ....

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  42. आज सुबह,
    बाल झाड़ते हुए,
    अवाक्
    रह गई थी.........
    'कितनी समानता है
    मेरी आँखों में',
    ख़ामोशी
    रूककर
    कह गई थी .

    सोचने को विवश करती मर्मस्पर्शी एवं खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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