Tuesday, October 4, 2011

शीत का प्रथम स्वर..........

प्रत्युष  का  स्नेहिल स्पर्श  
पाते ही,
हरसिंगार  के  निंदियाये फूल,  
झरने  लगते  हैं  
मुंह  अँधेरे,
वन-उपवन  की
अंजलियों  में
ओस से नहाया हुआ
सुवास,
करने  लगता  है  
अठखेलियाँ  
आह्लाद की,
पत्तों  की सरसराहट  
रस-वद्ध  रागिनी  
बनकर,
समा जाती  हैं  
दूर  तक .......
हवाओं  में,
गुनगुनी  सी  धूप
आसमान  से उतरकर 
कुहासे  को  बेधती  हुई
बुनने  लगती  है  
किरणों  के  जाल,
तितलियाँ पंखों पर 
अक्षत, चन्दन,रोली  लिए  
करती  हैं  द्वारचार  
और  
धरती,
मुखर  मुस्कान  की 
थिरकन  पर 
झूमती  हुई,  
स्वागत  करती  है........
शीत  के  
प्रथम  स्वर  का.
  


30 comments:

  1. कल 06/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  3. मोहक कविता है शीत के प्रथम स्पर्श सी ही !

    ReplyDelete
  4. बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...विजयादशमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ !

    ReplyDelete
  5. शीत दस्तक देने लगी है.. शरद की मनमोहक सुबह का सुंदर चित्रण !

    ReplyDelete
  6. वाह वाह कितना खूबसूरत स्वागत किया है।

    ReplyDelete
  7. गुनगुनी सी धूप
    आसमान से उतरकर
    कुहासे को बेधती हुई
    बुनने लगती है
    किरणों के जाल,
    तितलियाँ पंखों पर
    अक्षत, चन्दन,रोली लिए
    करती हैं द्वारचार
    और
    धरती,
    मुखर मुस्कान की
    थिरकन पर
    झूमती हुई,
    स्वागत करती है........
    शीत के
    प्रथम स्वर का... swaagat hai is ehsaas ka

    ReplyDelete
  8. बहुत खूब ... जिंदगी स्वागत करती है शीत के स्पर्श का .. कितना ताज़ा स्पर्श ...

    ReplyDelete
  9. Very nice written Mridula Ji..
    Thanks and regards !

    Happy Durga Puja....

    ReplyDelete
  10. ढेर सारी शुभकामनायें.

    ReplyDelete
  11. तितलियाँ पंखों पर
    अक्षत, चन्दन,रोली लिए
    करती हैं द्वारचार

    बहुत सुन्दर प्रकृति चित्रण

    ReplyDelete
  12. प्रत्युष का स्नेहिल स्पर्श
    पाते ही,
    हरसिंगार के निंदियाये फूल,
    झरने लगते हैं....

    जाने क्या संयोग है.... सुबह सुबह देखा कि ऐसे उत्सवी माहौल में खडा हूँ जहाँ चारों दिशाओं से हरसिंगार के पुष्पों की वर्षा हो रहीं है....
    आपकी कविता पढकर मन उसी सुगन्धित स्वप्न का सूत्र पुनः पकड़ने का यत्न करने लगा....
    बहुत सुन्दर भाव/रचना... वाह!

    विजयादशमी की सादर बधाईयां...

    ReplyDelete
  13. सुंदर और मनमोहक रचना ।

    ReplyDelete
  14. बहुत खूबसूरत.......जैसे द्वार ख़ुशी के खोल गया कोई.........

    ReplyDelete
  15. आपकी कविता पढते हुए एहसास कविता के शब्दों से निकलकर आस-पास बिखर जाते हैं.. जैसे ये शीत की सिहरन, इस कविता के माध्यम से!!

    ReplyDelete
  16. बेहतरीन कविता

    विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  17. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
    आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  18. हरसिंगार मेरे प्रिय फूल हैं सुबह सुबह पारिजात के वृक्ष के नीचे जो गलीचा सा बिछता है उसका सुख केवल अनुपम है । आपकी कविता ने एक बार फिर उस अहसास को ताजा कर दिया ।

    ReplyDelete
  19. अभी अभी अपने गाँव से लौटा हूं. हरसिंगार के दो पेड़ उड्हुल के साथ दालान पर हैं. शरद के प्रारंभ में ओस की सेज पर बिछे हरसिंगार प्रतीक्षा करती प्रेमिका से लगते हैं. सुन्दर कविता.

    ReplyDelete
  20. प्रकृति का खूबसूरत चित्रण ....

    ReplyDelete
  21. शीत दस्तक देने लगी है.
    good welcome of coming winter.

    ReplyDelete
  22. मौसम ले रही है करवट और आपने उसके स्वागत की इस रचना के माध्यम से पूरी तैयारी कर दी है।

    ReplyDelete
  23. आसमान से उतरकर
    कुहासे को बेधती हुई
    बुनने लगती है
    किरणों के जाल,
    तितलियाँ पंखों पर
    अक्षत, चन्दन,रोली लिए
    करती हैं द्वारचार
    bhut hi achchi panktiyan.thanks.

    ReplyDelete
  24. ब्लॉग बुलेटिन की ११०० वीं बुलेटिन, एक और एक ग्यारह सौ - ११०० वीं बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  25. शरदागमन की गंध और गुन-गुन पंक्तियों से बिखर रही है .

    ReplyDelete