Friday, January 6, 2012

समय यहाँ कैसे बीते.......

कल्पनायें कहाँ से कहाँ ले जाती हैं.......एक नमूना है,चलिए आप भी इस उड़ान में मेरे साथ.......अगर एक भी पंक्ति आपको अपने आप से जुड़ी हुई लगे तो समझूँगी.......मेरा लिखना सफल हो गया.....

"समय यहाँ कैसे बीते
यह
सोच-सोचकर,
एक ख्याल
हमारे मन में
आया है,
टिकट मंगा लो
जल्दी से,
अगर तुम्हें भी
भाया है.
'कलकत्ते' से सब्ज़ी लायें
'दिल्ली' से नमकीन,
'कर्नाटक' का
इडली-डोसा,
चलो खाएं कुछ दिन,
मज़ा सुनो....
खाने-पीने का आएगा ,
खाली वख्त
यहाँ जो इतना,
अच्छे से,
कट जायेगा.
यहाँ बैठकर,नहीं
पता चलता
क्या-क्या फैशन
आता है,
बड़ी-बड़ी दूकानें हैं
'बम्बई' में,
क्या कुछ
तुम्हें पता है....
दोस्त हमारे बड़े
वहां हैं,
सबसे मिल आयेंगे,
वक़्त निकालेंगे थोड़ा
फिर 'शौपिंग' पर
जायेंगे.
दो-चार कमीजें
तुमको तो
लेनी होंगी ,
साड़ी-वाड़ी की
पीछे देखी जाएगी,
एक बना-बनाया 'कोट'
तुम्हारे लिए वहां
हम ले लेंगे,
कंगन-झुमके की पीछे
देखी जाएगी......
इतने में वो आये, बोले.....
'प्लीज़',कहानी आगे की
हमको कहने दो,
मेरा भी
मन करता है,
कुछ तो लिखने दो.....सो
उनको ही
कलम थमाकर,
मैं तो, चल दी,
पता नहीं
मेरे पीछे
क्या-क्या है
लिख दी.....
'सुनिए हमसे,मैं
अगला भाग
सुनाता हूँ,
नया-नया हूँ,
लिखने में,
घबड़ाता हूँ......
'कलकत्ते','दिल्ली','कर्नाटक'
तक की,'प्लानिंग'
ठीक गयी......लेकिन
जैसे 'बम्बई' पहुंचे,
बस,
उनकी नीयत,
बदल गयी.
बड़े सबेरे ,धीरे से
आकर
वो बोलीं....
'वैन-हुसन' और
'लुइ-फिलिप' की
बनी कमीजें,
'भुवनेश्वर' में मिलतीं हैं,
सुनो,आजकल
यही 'लेबलें'
चलतीं हैं.
यहाँ खरीदेंगे तो बस
सामान बढ़ेगा,
'भुवनेश्वर' में ले लेंगे
क्या फ़र्क पड़ेगा ?
फिर 'लेबल'वाली
चीज़ों में,
क्या 'बम्बई' क्या
'आसाम',
वही 'डिजायन'होता है
होता है,
एक दाम......लेकिन
'बम्बई'वाली साड़ी
'बम्बई'में ही
मिलती है,
और कहीं,कितना खोजें
ये कहीं नहीं
बनतीं हैं.
अब उठो,चलो
साड़ी लाते हैं,
जाने कब फिर
आ पाते हैं.
गए 'मार्केट'
साड़ी ले लीं,तुम्हें
'कोट'
लेनी है बोलीं,
तरह-तरह के 'कोट'
सजे थे
'शो -विंडो 'में,
एक मुझे भाया था,
तब तक उनका स्वर
उड़ता सा ,
कानों में आया था......
'अरे',यहाँ तो
बना-बनाया 'कोट'
बड़ा महंगा है,
ऐसा करते हैं,
कपड़ा लेते हैं
सिलवा लेंगे ,
अपना 'टेलर' बढ़िया है
उससे ही
बनबा लेंगे.
'रेमंड्स' का कपड़ा
अच्छा होता
ऐसा सब कहते हैं,
चलन इसी का
चला  हुआ है,
पहने सब रहते हैं.
अब,
जब 'रेमंड्स' ही भा गया
तो....
इसका 'शो-रूम' तो
'भुवनेश्वर' में भी
आ गया,
यहाँ के कपड़ों में,
कौन से
'सुर्खाव' के पर हैं,
वहां
दूकानदार जानते हैं,
छोड़ देते
'लोकल' कर हैं.
अब,चलो ठाठ से
घर चलकर ही
'कोट' सिलाना,
आज
'झवेरी' चलते हैं,
कंगन-झुमका भी तो
है लेना.......                                                                                                                                                             
  

  
 
 
 

41 comments:

  1. सुझाव - मन को भाया , टिकट कटा लिया है

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. सचमुच आखिर ऐसा ही होता है...ज्यादातर...बहुत बढिया...

    ReplyDelete
  4. wah mradula ji aapka yeh andaj bahut hi nirala aur sunder hai...nice .....badhai

    ReplyDelete
  5. होता तो ऐसा ही है :)


    सादर

    ReplyDelete
  6. Wah!!! Wah!!! Wah!!!

    Khoobsurat andaaz, behtareen khayal....

    http://www.poeticprakash.com/

    ReplyDelete
  7. अरे बाप रे!!! आज तो आपको पकडना ही मुश्किल हो रहा है और इस चक्कर में इस कल्पना की उड़ान के साथ-साथ सांस फूलने लगी है!! सचमुच मज़ा आया मगर दुबई में भी हमने सामानों पर "मेड इन इंडिया" ही लिखा पाया!!
    बहुत शानदार!!

    ReplyDelete
  8. वाह...क्या अद्भुत रचना है...लाजवाब

    नीरज

    ReplyDelete
  9. Aapne to pooree tafreeh kara dee!

    ReplyDelete
  10. :-))
    औरत का सर्वसिद्ध अधिकार है ये..
    बहुत बढ़िया...

    ReplyDelete
  11. ब्रांडेड कपड़ों का दर्द अच्‍छा लगा।

    ReplyDelete
  12. 100%sahi bat kh di kavita ke madhyam se.

    ReplyDelete
  13. कहाँ से चले थे और कहाँ पहुँच गए? अरे अपने तो सही ही कहा था उसके दूसरे हाथ में कलम जाते ही अर्थ बदल गए. क्या ऐसा ही होता है? नहीं तो हम सब एक जैसे ही होते हें. फिर भी दूसरी जबान से कुछ कहे जाते हें.

    ReplyDelete
  14. mujhe to aapki kavita me apni nijta aur khas pehchan khote shahar dikh rahe hain.... is baazaar aur retel kranti ne desh ke vibhinn sthan ke khasiyat ko nashth karne ka kaam kiya hai...kavita me chhupe vyangya aur trasadi hai...pata nahi aapne likhte samay yah socha ya nahi....

    ReplyDelete
  15. बहुत अच्छी प्रस्तुति,मन की भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति ......
    WELCOME to--जिन्दगीं--

    ReplyDelete
  16. मै समर्थक बन गया हूँ आप भी बने तो हार्दिक खुशी होगी,...

    ReplyDelete
  17. बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली....

    ReplyDelete
  18. पत्नी शोपिंग मेनिया की बेहतरीन अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  19. आपने तो कितना कुछ याद दिला दिया ...

    ReplyDelete
  20. वाह! यह तो अद्भुत रचना है...
    सादर..

    ReplyDelete
  21. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

    ReplyDelete
  22. कलम आपने क्यों पकड़ा दी ? सारी पोल खोल कर रख दी :):)

    बढ़िया प्रस्तुति

    ReplyDelete
  23. इसी में समझदारी हैं :)

    ReplyDelete
  24. बहुत अच्छी पोस्ट है मैडम आपकी

    ReplyDelete
  25. ही ..ही ..ही ..बहुत ही बढिया...अब सच कौन बोल रहा है कैसे पता चले ?...

    ReplyDelete
  26. बहुत बढिया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति ......
    WELCOME to new post--जिन्दगीं--

    ReplyDelete
  27. sach jab chalna hota hai ham kahan se kahan.. aur kya-kay soch aur kar baithte hain..
    bahut hi sundar rachna...

    ReplyDelete
  28. kalpanaayen kahaan se kahaan le jaati hain, kya kya khareed laati hai, window shoping bhi...aur fir laut ke buddhu ghar ko aaye, sapna tamaam...bahut rochak rachna, badhai.

    ReplyDelete
  29. आपकी कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .

    ReplyDelete
  30. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

    ReplyDelete
  31. kaavya-kaavya
    bahut saara anubhav ho gayaa
    yahaan-wahaan ghoom lene ka ...
    a a n a n d !!

    ReplyDelete
  32. बहुत सुन्दर सचमुच यही होता है अक्सर

    ReplyDelete
  33. अद्भुत रचना है...

    शुभकामनओं के साथ
    संजय भास्कर

    ReplyDelete