Monday, April 23, 2012

मैं तबसे सोच रही हूँ.....

बदलते रहते हैं 
ज़रा-ज़रा से शब्द,
बदलती रहती है 
बोल-चाल की भाषा,
समय,स्थान,
परिवेश के साथ 
ऐसे......कि हमें 
पता ही नहीं चलता.
अभी-अभी 
ऐसा ही हुआ.....
बड़ी तरो-ताज़ा सी 
बात है,
घर आये अतिथि से कहा-
'खाना लाती हूँ',
बेहद सादगी भरा 
जबाब आया-
'रहने दीजिये,
खाकर ही चला हूँ 
भात-दाल-तरकारी....
और 
इस भात-दाल-तरकारी जैसा 
सरल वाक्य,
मैं तबसे सोच रही हूँ.....
कब,कहाँ,कैसे 
चावल-दाल-सब्ज़ी
बनकर 
मेरे साथ रहने लगा.


24 comments:

  1. बहुत कुछ बदल गया है.............

    सहज अभिव्यक्ति...

    अनु

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  2. वक़्त के साथ ऐसे बहुत से शब्दों में परिवर्तन आ गए हैं, जिनमे अपनेपन का अहसास नहीं होता... बहुत सुन्दर भाव

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  3. साधारण सी बात पर गहन सोच ...

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  4. वाह!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,..प्रभावी रचना,..

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....

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  5. इस भात-दाल-तरकारी जैसा
    सरल वाक्य,
    मैं तबसे सोच रही हूँ.....
    कब,कहाँ,कैसे
    चावल-दाल-सब्ज़ी
    बनकर
    मेरे साथ रहने लगा.
    gradually so many things are changing and we are accepting it by heart but its not near to heart.BEAUTIFUL LINES WITH FEELINGS.

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  6. जगह-जगह का फर्क है...शुद्ध हिंदी भाषी को अपुन, तेरे, मेरे, तू, तड़ाक करते भी सुन सकते हैं...

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  7. sahaj aur sunder prastuti....waqt ke saat sab badal jata hai,pata hi nahi chalta ki kab mahaul hume apne anurup dhaal leta hai.

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  8. पर असली मिठास भात दाल तरकारी में ही थी ... फिर तो सभ्यता के मुखौटे चढ़ने लगे ...

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  9. एक अद्भुत चित्रण

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  10. वाह ...बहुत खूब ।

    कल 25/04/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

    आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


    ... मैं तबसे सोच रही हूँ ...

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  11. वाह ! भात कब से चावल हो गया और बालक कब से बाबा हो गया पता ही नहीं चला, सुंदर कविता..

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  12. समय के बदलाव कों बारीकी से पकड़ा है ... बहुत खूब ....

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  13. बहुत नया सा ख्याल मृदुलाजी ...वाकई यही तो हमारी भाषा की सुन्दरता है ...!!!!!

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  14. आपकी रचना बहुत कुछ सिखा जाती है..

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  15. sarthak post behatrin rachna shabdon ka sundar vinyas man ko moh liya .

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  16. bhaat daal, tarkari se.....chawal daal sabji...!!! SARL SHABDON MEIN GAHRI BAAT...

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  17. बहुत प्रभावी है रचना |
    आशा

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  18. यूँ ही साथ चलते चलते पता कहाँ लगता है ...
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  19. सरलता में ही सम्पन्नता है।

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  20. बहुत ही बेहतरीन रचना...

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  21. सही कहा, कब यह सरलता खो गयी कुछ पता भी नहीं चला. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति :-)

    आभार

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