Saturday, October 27, 2012


शीत का प्रथम स्वर.........

प्रत्युष  का  स्नेहिल स्पर्श  
पाते ही,
हरसिंगार  के  निंदियाये फूल,  
झरने  लगते  हैं  
मुंह  अँधेरे,
वन-उपवन  की
अंजलियों  में
ओस से नहाया हुआ
सुवास,
करने  लगता  है  
अठखेलियाँ  
आह्लाद की,
पत्तों  की सरसराहट  
रस-वद्ध  रागिनी  
बनकर,
समा जाती  हैं  
दूर  तक .......
हवाओं  में,
गुनगुनी  सी  धूप
आसमान  से उतरकर 
कुहासे  को  बेधती  हुई
बुनने  लगती  है  
किरणों  के  जाल,
तितलियाँ पंखों पर 
अक्षत, चन्दन,रोली  लिए  
करती  हैं  द्वारचार  
और  
धरती,
मुखर  मुस्कान  की 
थिरकन  पर 
झूमती  हुई,  
स्वागत  करती  है........
शीत  के  
प्रथम  स्वर  का.
  

33 comments:

  1. और
    धरती,
    मुखर मुस्कान की
    थिरकन पर
    झूमती हुई,
    स्वागत करती है........
    शीत के
    प्रथम स्वर का.

    मृदुला जी शुभ प्रभात आपने बचपन की याद दिला दी
    आदरणीय गुप्त जी की कविता से आपका स्वागत

    है बिखेर देती वसुंधरा मोती सबके सोने पर
    रवि बटोर लेता है उनको सदा सवेरा होने पर

    ReplyDelete
  2. हरसिंगार अठखेलियाँ , विदुषी सी चमकार ।

    बढे धरा का सौन्दर्य, जनमन पर उपकार ।

    जनमन पर उपकार, प्रफुल्लित काया नाचे ।

    गहन व्याख्या मूर्त, कवियत्री महिमा बाँचे ।

    सीधे साँचे भाव, बधाई शुभ स्वीकारो ।

    बढ़िया यह सृंगार, धरा पर स्वर्ग उतारो ।।

    ReplyDelete
  3. उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।

    ReplyDelete
  4. बेहद भावपूर्ण उत्कृष्ट प्रस्तुति....

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर...भावपूर्ण रचना...

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  6. तितलियाँ पंखों पर
    अक्षत, चन्दन,रोली लिए
    करती हैं द्वारचार
    और
    धरती,
    मुखर मुस्कान की
    थिरकन पर
    झूमती हुई,
    स्वागत करती है........
    शीत के
    प्रथम स्वर का.
    ....बहुत ही सुन्दर दृश्य उकेरा है ....अति सुन्दर ..!!!!!!

    ReplyDelete
  7. शीत का स्वागत करते सुंदर शब्द!!

    ReplyDelete
  8. बहुत ही सुन्दरता से शीत का स्वागत हुआ है...
    मनभावन सुन्दर रचना..
    :-)

    ReplyDelete
  9. शीत का स्वागत ...बहुत सुन्दर..

    ReplyDelete
  10. हलकी सी ठंड पड़ने लगी है। और् आपने कविता में बिम्बों के द्वारा इसका अद्भुत चित्र खींचा है।

    ReplyDelete
  11. वाह..... अति सुंदर
    उत्कृष्ट शाब्दिक अलंकरण लिए रचना

    ReplyDelete
  12. शरद के आगमन का मनोहर चित्र .प्रकृति के प्रति सम्मोहन

    पैदा करता सा .


    रविवार, 28 अक्तूबर 2012
    तर्क की मीनार

    http://veerubhai1947.blogspot.com/

    ReplyDelete
  13. गुनगुनी सी धूप
    आसमान से उतरकर
    कुहासे को बेधती हुई
    बुनने लगती है
    किरणों के जाल,
    तितलियाँ पंखों पर
    अक्षत, चन्दन,रोली लिए
    करती हैं द्वारचार

    बहुत खूबसूरती से आने चित्रित कर दिया है शीत को। बहुत अच्छे शब्दों का चयन हुआ है, सचमुच आपकी लेखनी एक समर्थ लेखनी है ।

    ReplyDelete
  14. शरदागमन की सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपका आभार ....

    ReplyDelete
  15. अत्यंत मनभावन चित्रण..शरद की सुहानी सुबह का...

    ReplyDelete
  16. बहुत ही सुन्‍दर वर्णन किया है आपने शरद के आगमन का ...
    आभार

    ReplyDelete
  17. शीत की प्यारी सी सिहरन का अहसास हुआ आपकी रचना पढ़ कर ... बहुत ही प्यारी सी रचना!

    ReplyDelete
  18. स्वागत है...शीत के प्रथम स्वर का...

    ReplyDelete
  19. अति सुन्दर रचना..

    ReplyDelete
  20. आहा ये शीत के प्रथम स्वर । स्वागत है शरद ।

    ReplyDelete
  21. और
    धरती,
    मुखर मुस्कान की
    थिरकन पर
    झूमती हुई,
    स्वागत करती है........
    शीत के
    प्रथम स्वर का.

    बहुत खूब !!

    दिवाली की शुभकामनाएं !!
    मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    माँ नहीं है वो मेरी, पर माँ से कम नहीं है !!!

    ReplyDelete
  22. vandevii jaise swayan puspsajjit manohari mousam liye padhari ho. Bahut hi manoram drasya hai.

    ReplyDelete
  23. वाह वाह बहुत सुन्दर......

    ReplyDelete
  24. शीत तो अब आई है .... बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete
  25. दुबारा आई यहां तो लगा कि प्रत्युष कहीं आपका पोता या नाती तो नही । ऐसा ही होता है यह स्पर्श ।

    ReplyDelete
  26. उम्दा प्रस्तुति |शीत के आगमन की भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
    आशा

    ReplyDelete
  27. सादर आमंत्रण,
    आपका ब्लॉग 'हिंदी चिट्ठा संकलक' पर नहीं है,
    कृपया इसे शामिल कीजिए - http://goo.gl/7mRhq

    ReplyDelete