Monday, October 28, 2013

ज़माना चाहे जितना भी बदल गया हो,लोग-बाग कितने भी 'मॉडर्न' हो गये हों .......लेकिन शादी के बाद, बेटी के विदाई की भावुक कर देनेवाली नाज़ुक घड़ियाँ, जस-की-तस हैं.......वे कभी नहीं बदलेंगी......इसी भाव पर आधारित है ये कविता.......

दर्द का एक दौड़ सा
मन में समाता 
जा रहा है.....और पलकें 
इन दिनों,
तुमसे बिछड़ने की 
करुण सी वेदना में,
भींगने जब-तब लगी है.......
काँपता,नींदों में मन 
और धड़कनें
बढ़ने लगीं हैं,
विदा की घड़ियाँ
सिमटकर
अब हमें....छूने लगी हैं,
मन व्यथित-व्याकुल
समंदर में
लिपटता जा रहा है,
विदा का बादल उमड़
चारो दिशा
मंडरा रहा है.....
इन दिनों तुमसे विलग
होने की
निर्मम कल्पना,
प्रति-पल
विकल करने लगी है.....
और.....आँखों में उदासी
पिघलने
जब-तब लगी है.......

11 comments:

  1. हृदयस्पर्शी भाव.................
    विदा के विचार से ही मन भीग जाता है....
    सादर
    अनु

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  2. भावपूर्ण ...
    मन को छूती है रचना ... विरह का भाव ...

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  3. बेहतरीन...मर्मस्पर्शी


    सादर

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  4. बेहतरीन, बहुर ही भावुक कर देने वाली रचना॥

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  5. बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी !
    नई पोस्ट : कुछ भी पास नहीं है

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  6. और धड़कनें
    बढ़ने लगीं हैं,
    विदा की घड़ियाँ
    सिमटकर
    अब हमें....छूने लगी हैं,
    मन व्यथित-व्याकुल
    समंदर में
    लिपटता जा रहा है,
    bahut hi mamspashi bhav ko samete hui ye rachana behad prabhavshali lagi

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा रविवार, दिनांक :- 24/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/" चर्चा अंक - 50- पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....

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  8. बहुत सुन्दर ,हृदयस्पर्शी !
    (नवम्बर 18 से नागपुर प्रवास में था , अत: ब्लॉग पर पहुँच नहीं पाया ! कोशिश करूँगा अब अधिक से अधिक ब्लॉग पर पहुंचूं और काव्य-सुधा का पान करूँ | )
    नई पोस्ट तुम

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