नीम के पत्ते
यहाँ
दिन-रात गिरकर,
चैत के आने का हैं
आह्वान करते,
रात छोटी ,दोपहर
लम्बी ज़रा होने लगी है.......
पेड़ से इतने गिरे पत्ते
कि दुबला हो गया है
नीम,जो पहले
घना था ,
टहनियों के बीच से
दिखने लगा
आकाश,
दुबला हो गया है
नीम,जो पहले
घना था .......
हवा में फैली
मधुर,मीठी,वसंती
महक
अब जाने लगी है……
चैत की चंचल हवा में
चपलता
चलने लगी है.......
क्यारियों से फूल पीले
अब विदा होने लगे हैं
धूप की नरमी पे
गरमी का दखल
बढ़ने लगा है……
सूर्य की किरणें सुबह
जल्दी ज़रा
आने लगी हैं,
रात में
कुछ देर तक
अब ,चाँद भी
रहने लगा है.......
प्रकृति वर्णन की अनोखी क्षमता है आपके शब्दों में ..........सहज सुंदर हृदयस्पर्शी ....!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...!!
बहुत बढ़िया ..होली की शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत उम्दा प्रस्तुति...!
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनायें ।
RECENT POST - फिर से होली आई.
sundar prakriti warnan ...
ReplyDeleteसुंदर रचना...रंगों से सराबोर होली की शुभकामनायें...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना..
ReplyDeleteआपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (13-04-2014) को ''जागरूक हैं, फिर इतना ज़ुल्म क्यों ?'' (चर्चा मंच-1581) पर भी होगी!
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर…
सुंदर रचना !
ReplyDeleteसुन्दर चैत्र चित्र
ReplyDeleteवाह ! बहुत खूब ! चैत्र की मुलायम धूप एवं उजली रातों का बड़ा ही मनोरम चित्र खींचा है ! बहुत ही मनभावन रचना !
ReplyDeletewaahh sundar .. drishya varnana :)
ReplyDeleteप्रकृति का सुंदर वर्णन
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