Tuesday, March 22, 2011

कैसी है ये यात्रा.......

पहली बार जब अकेले  हवाई-यात्रा(1984    में दिल्ली से कुबैत)   करनी पड़ी उसीका एक छोटा सा अनुभव............

कैसी है ये  यात्रा 
कैसा है 
ये सफ़र ,
इधर और उधर 
सिर्फ़
नए ,अपरिचित चेहरे .
कहीं बच्चों की 
कतार,
कहीं सरदारजी 
सपरिवार ,
कोई खा रहा 
चौकलेट,
कोई पी रहा 
सिगार .
किसे दिखाऊँ 
उस औरत का 
जूड़ा,
किसे दिखाऊँ 
उन महाशय की 
मूंछें ,
किससे कहूं 
'एयर -बैग' उतारो ,
किससे कहूं 
'सीट -बेल्ट' 
बाँधो.
किसे पिलाऊँ 
अपने हिस्से का 
'कोल्ड -ड्रिंक',
किसके कन्धों पर 
सोऊँ  उठंगकर
कि
बगल की कुर्सी पर
न तुम,न तुम और न तुम.

32 comments:

  1. बहुत खूब ....।।

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  2. एक दुसरे से परस्पर अनजान होती दुनिया ! क्या कहें ...

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  3. अगर कोई सँग होता तो न बनती यह कविता !

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  4. अकेलेपन का एहसास सुंदर तरीके से बयां किया है -

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  5. किसके कन्धों पर
    सोऊँ उठंगकर
    कि
    बगल की कुर्सी पर
    न तुम,न तुम और न तुम.
    bahut hi achha likha hai

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  6. अकेलेपन के एहसास से रूबरू कराती कविता अच्छी लगी.. बहुत सुन्दर !

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  7. अकेलेपन का एहसास सुंदर तरीके से बयां किया है|धन्यवाद|

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  8. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (24-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  9. सुंदर तरीके से बयां किया है

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  10. आदरणीय मृदुला जी
    नमस्कार !
    ..............बहुत खूबसूरत रचना !

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  11. अद्भुत!
    कितनी अच्छी कविता बना दी है आपने इस संस्मरण पर।

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  12. वाह !!
    सुन्दर और वास्तविक अनुभव...
    आनंद आ गया....!
    शायद हम सभी अकेले यात्रा के दौरान
    कुछ ऐसा ही महसूस करती हैं......!!

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  13. एक शानदार रचना जी, धन्यवाद

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  14. पहली बार हवाई यात्रा करने में बड़ा नर्वस लगता है ... मुझे भी लगा था ... अब तो लगता है कि हवाई यात्रा से रेल यात्रा सुखद होता है .. कम से कम पैर पसर कर सो तो सकते हैं ...

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  15. बहुत सुन्दर.अकेलेपन के अहसास का बहुत सशक्त चित्रण ...

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  16. Bahut sundar prastuti...
    HOLI & Rangpanchmi Ke HAARDIK SHUBHKAMNAYEN..
    Saadar

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  17. किससे कहूं
    'एयर -बैग' उतारो ,
    किससे कहूं
    'सीट -बेल्ट'
    बाँधो.
    किसे पिलाऊँ
    अपने हिस्से का
    'कोल्ड -ड्रिंक',
    laazwaab ,jo baate jodti hai ,wahi yaado me bas kar taklif pahunchane lagti hai .

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  18. वाह वाह क्या बात है ....मृदुला जी ...
    कोल्ड -ड्रिंक तो आप हमें पिला दें ....
    बाकी बगल में नींद कहाँ देखने देती है ....):

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  19. अकेलेपन के अहसास का बहुत सशक्त चित्रण ...बहुत सुन्दर...

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  20. नया अंदाज़ ...शुभकामनायें !!

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  21. आपके विचार बहुत अच्छे हैं।

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  22. चलिए अकेले सफर करने से एक कविता का तो जन्म हुआ यह क्या कम है

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  23. बहुत बढ़िया।
    अकेलेपन से उपजी कविता के भाव बहुत सुंदर हैं।

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  24. 'कुछ हम न बदल जाएँ
    कुछ तुम न बदल जाना
    ..................................
    ..................................
    हम तो,निभाएंगे ही
    तुम भी इसे निभाना '
    कोमल भावों की सुन्दर रचना

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  25. आपने तो माहॉल सामने ला दिया ... आज भी ऐसा ही माहॉल होता है ....

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