Monday, December 27, 2010

आत्मीयता से भरी बातों को........

आत्मीयता से भरी बातों को
"कुरियर" के सहारे,
मुझ तक पहुँचा दिया,
चलो अच्छा किया,
एक शिष्टाचार था
बाकायदा निभा दिया .
विश्वास और अविश्वास के
पलड़े में
झूलता हुआ
अंतर्द्वंद,
मौसम के ढलान पर
अप्रत्याशित परिस्थितियों का
सामना करते हुए,
अपेक्षाओं  के मापदंड से
फिसलता गया,
विधिवत  प्रक्रियाओं को
कार्यान्वित करना,
भूलता गया
और काट-छाँटकर
निकाले हुए समय ने ,
इस लाचार मनःस्थिति को
अपराध मानकर,
अपनी बहुमूल्यता का एलान
इस अंदाज़ में
किया
कि मुजरिम बनाकर,
हमें
कठघरे में
खड़ा कर दिया,
चलो अच्छा किया,
एक शिष्टाचार था
अपने ढंग से निभा दिया.

41 comments:

  1. मृदुला जी,

    बहुत सुन्दर रचना.....काफी अलग सी लगी कूरियर का इस्तेमाल बखूबी किया है आपने..... ..हो सके इन शब्दों को दुरुस्त कर लें.....

    वाकायदा - बकायदा
    अपेक्छाओं - अपेक्षाओं

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  2. अपनी बहुमूल्यता का एलान
    इस अंदाज़ में
    किया
    कि मुज़रिम बनाकर,
    हमें
    कठघरे में
    खड़ा कर दिया,

    बहुत गहन अहसास..मर्मस्पर्शी सुन्दर प्रस्तुति

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  3. बहुत सुन्दर रचना ! आज हम औपचारिकता ले युग में जी रहे हैं !

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  4. काफी तल्खी भरे अहसास ! कुछ सोचने पर विवश करते हैं, आज की मशीनी जिंदगी का भान होता है आप की कविता पढ़कर .

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  5. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  6. गहन अहसासो की अद्भुत रचना दिल को छू गयी।

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  7. आतंरिक पीड़ा का सजीव चित्रण ...बधाई .....

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  8. सशक्त रचना.काफी अलग सी लगी कूरियर का इस्तेमाल बखूबी किया है आपने,बधाई.नव वर्ष की शुभकामनाएँ.

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  9. कूरियर को लेकर अच्छी चोट की है । शिष्टाचार निभाने पर भी खूब निशाना साधा है । औपचारिक रिश्ते तो ऐसे ही निभते हैं पर जब अपना कोई ये करे तो फिर आपकी कविता वाले भाव ही उभरते हैं ।
    शुंदर और अलग सी कविता ।

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  10. आत्मीयता से भरी बातों को
    "कुरियर" के सहारे,
    मुझ तक पहुँचा दिया,
    चलो अच्छा किया,
    एक शिष्टाचार था
    वाकायदा निभा दिया .
    .. किस तरह एक पल में ही आज लोग जल्दी ही आपसी रिश्तों को भूल औपचारिकता पर उतर आते हैं, इस दर्द को आपने बहुत ही गहराई से प्रस्तुत किया है ....

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  11. courier jaise sabd ko bimb bana kar gajab ka aapne sabd jaal buna...badhai mridula di..:)

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  12. naye-naye prteekon ke madhyam se apne kuchh alag andaz ki bhavpoorn ,sarthak rachna prastut ki hai..
    bahut sundar lagi..

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  13. अंतर्द्वद्व की मनोव्यथा -
    बहुत सुंदर रचना -
    मान को छू गयी .

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  14. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना( मरुभूमि कितना ) कल मंगलवार 28 -12 -2010
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..


    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  15. आज की इस कविता पर कुछ भी कहने की इच्छा नहीं हो रही है...मेरा सबसे अंतरंग मित्र इसी व्यथा को झेल रहा है... और मैं हूँ उसका एकमात्र साक्ष्य...
    मैं जानता हूम कितनी वेदना छिपी है इस कविता में और एक एक अंश सजीव!!

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  16. मनः स्थिति का सुन्दर चित्रण किया है आपने, सुन्दर रचना, साधुवाद.

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  17. socho gar ye bhi na nibhaya hota
    socho gar itna bhi shishtachaar na dikhaya hota
    apekshaayen upekshaayen ban jati jab
    socho kitne gam ke saagaron ke paar jana hota.

    bahut sunder shado se man ki baat keh di.

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  18. हां सच में आत्मीयता से भरी बातें अनमोल और अतुलित ...

    सुंदर पोस्ट

    मेरा नया ठिकाना

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  19. गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर
    डोरोथी.

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  20. हृदयस्पर्शी कविता।

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  21. मृदुला जी बहुत ही गहरे जज्बात है इस कविता में ........मन को छू गयी .
    फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी

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  22. गहरे भाव लिये हे आप की यह सुंदर रचना, धन्यवाद

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  23. gahra asar chod gayee ye rachana.

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  24. आत्मीयता से भरी बातों को
    "कुरियर" के सहारे,
    मुझ तक पहुँचा दिया,
    चलो अच्छा किया,

    यह कुरियर इस रचना में एक अलग ही असर दे रहा है ...जैसे की आत्मीय सम्बन्ध खत्म करने का ऐलान कर रहा हो ...

    संवेदनशील रचना

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  25. अपनी बहुमूल्यता का एलान
    इस अंदाज़ में
    किया
    कि मुजरिम बनाकर,
    हमें
    कठघरे में
    खड़ा कर दिया,
    चलो अच्छा किया,
    एक शिष्टाचार था
    अपने ढंग से निभा दिया.
    कविता में नये तेवर के साथ भाव व्यंजना पूरी प्रबलता से मुखरित हुई है !
    धन्यवाद
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  26. विश्वास और अविश्वास के
    पलड़े में
    झूलता हुआ
    अंतर्द्वंद...

    बेहतरीन अभिव्यक्ति ।

    .

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  27. आदरणीया मृदुला प्रधान जी
    प्रणाम !
    बहुत भावनाप्रधान कविता के लिए आभार और साधुवाद !
    मुजरिम बनाकर,
    हमें
    कठघरे में
    खड़ा कर दिया,
    चलो अच्छा किया,
    एक शिष्टाचार था
    अपने ढंग से निभा दिया.

    रिश्तों की औपचारिकता से आहत कवि मन की अनुभूतियों की अभिव्यक्ति स्पष्ट झलक रही है …

    ~*~नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  28. This comment has been removed by the author.

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  29. औपचारिकताओं में ही तो बंध गये हैं अधिकतर रिश्ते नाते.
    ..बहुत ही अच्छी कविता .
    मृदुला जी आप को नववर्ष २०११ की हार्दिक शुभकामनाएँ .

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  30. आत्मीयता से भरी बातों को
    "कुरियर" के सहारे,
    मुझ तक पहुँचा दिया,
    चलो अच्छा किया,






    ताना हो तो ऐसा हो , बहाना हो तो ऐसा हो
    हर बात पै जालिम का रिसाना हो तो ऐसा हो ..

    क्या अंदाज है आपकी इस खास बात के..अच्छा लगा ..


    नववर्ष की अनेक शुभकामनाएं

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  31. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं....

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  32. सत्य का आइना दिखाती सुन्दर और प्रभावशाली रचना .. नव वर्ष की हार्दिक सुभकामनाये .

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  33. naya saal mangalmai ho..........

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  34. आदरणीय ब्लागमित्र

    नमस्कार और नये साल की शुभकामनाऐं

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  35. चलो अच्छा हुआ । बढिया प्रस्तुति...

    2011 का आगामी नूतन वर्ष आपके लिये शुभ और मंगलमय हो,
    हार्दिक शुभकामनाओं सहित...

    मैं आपके इस ब्लाग को फालो कर रहा हूँ आप भी कृपया मेरे ब्लाग नजरिया को फालो कर मुझे सहयोग प्रदान करें । धन्यवाद सहित. प्रतिक्षा में...
    www.najariya.blogspot.com 'नजरिया'

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  36. नये वर्ष की अनन्त-असीम शुभकामनाएं.

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  37. इस आधुनिक MATERIALISTIC युग में हम रिश्तों को बस FORMALITIES में जीते हैं और जीवन की डोर केवल EMAiL और COURIER से ही जुड़ी रह गयी है....NICE POST.

    "NAYE SAAL HUMKO YEH UMMID DE-DE
    TU SAPNE DE NA DE ..PER NEEND DE-DE"
    Read more at my Blog & give ur views plz....

    Regards....

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  38. नये वर्ष की असीम-अनन्त शुभकामनाएं.

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  39. सही कहा आपने मृदुलाजी!!आज कल सारे रिश्तों के शिष्टाचार फोने और कोरियर के माध्यम से ही पूरे हो जाते हैं.अंतर्द्वंद हम आप जैसे लोगों को होता है...और खुद पर इलज़ाम लेने से तो अच्छा ही है की उसे किसी दूसरे के सर मढ़ कर खुद शिष्ट बने रहें....सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बधाई...

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  40. बहुत खूब .. कभी कभी संवेदनहीनता भी झेलनी पढ़ती है इन्सान को ... गहरी रचना है ....

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