Monday, January 16, 2012

जाड़ों में प्रायः.......

जाड़ों में
प्रायः
दिख जाते हैं,
वृद्ध-दंपत्ति, झुकी हुई
माँ ,कांपते हुए
पिता.....धूप सेकते हुए.....
कभी 'पार्क'में,कभी
'बालकनी'में,
कभी 'लॉन' में
तो कभी'बरामदों' में.
मोड़-मोड़कर
चढ़ाये हुए 'आस्तीन'
और
खींच-खींचकर
लगाये हुए'पिन' में
दिख जाता है.......
वर्षों से
विदेशों में बसे,
उनके
धनाढ्य,
बाल-बच्चों का
भेजा हुआ,
बेहिसाब प्यार .
ऊल-जलूल ,पुराने,
शरीर से
कई गुना बड़े-बेढंगे
कपड़ों का,
दुःखद सामंजस्य,
सुदूर........किसी देश में,
सम्पन्नता की
परतों में
लिपटी हुई नस्ल को,
धिक्कारती.......
ठंढ से, निश्चय ही
बचा लेती है,
इस पीढ़ी की
सामर्थ्य को,
संभाल लेती है........लेकिन
कृतघ्नता  के आघात की
वेदना का
क्या......
आपसे अनुरोध है,
इतना ज़रूर कीजियेगा,
कभी किसी देश में
मिल जाये
वो नस्ल......तो
इंसानियत का,
कम-से कम
एक पर्चा,
ज़रूर
पढ़ा दीजियेगा.......... 



  

32 comments:

  1. वाह वाह..
    बेहतरीन रचना मृदुला जी...
    दिल को कहीं गहरे तक छू गयी...
    सादर.

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  2. बहुत ही उम्दा और दिल को छूने वाली रचना ...

    आप के ब्लॉग पर पहली बार आई हूँ , ख़ुशी हुई आप के ब्लॉग पर आकर...फोलो कर रही हूँ,उम्मीद है आना जाना लगा रहेगा .......

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  3. कभी किसी देश में
    मिल जाये
    वो नस्ल......तो
    इंसानियत का,
    कम-से कम
    एक पर्चा,
    ज़रूर
    पढ़ा दीजियेगा.....

    ...बहुत खूब...हरेक पंक्ति दिल को छू गयी..बज़ुर्गों की अवस्था का सटीक चित्रण..

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  4. दिल को छू गई आपकी ये रचना ...आभार

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  5. तेजी का दौर है ... पैसे के पीछे भाग रहे हैं सब ... पर ऐसा आज कल बस विदेश में रहने वाले ही नहीं देश में रहने वाले बच्छे भी बहुत करते हैं ...

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  6. यह दृष्टि उधर भी हो ... बहुत नम से जज़्बात

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  7. दिल को छूते शब्‍द ...

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  8. jis shahar mein main rehta hun.. waha to ye drishya aam hain... dehradun to jana hi retired logo k liye jata hain.. bujurg parents yaha par aur bache videsho mein settled....

    behad acchi rachna...

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  9. वाह,सटीक और सामयिक रचना.

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  10. यह नस्‍ल आजकल हर घर में है।

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  11. jo jeevit nahee rahtaa
    sardee ke prakop se
    use aglee sardee mein
    yahin padaa rahtaa thaa
    ek bhikhaaree
    ab dikhtaa nahee
    kah kar yaad kiyaa jaataa

    yathaarth se paripoorn rachnaa
    jo likhte hein aap wo sab saaf saaf sab vaise hee dikhtaa

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  12. भावों से नाजुक शब्‍द......बेजोड़ भावाभियक्ति.

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  13. hah ! jinhe hare noto ki chamak dikhe unki aankh se parde kahan utarte hai...maa-baap ke jarzer shareer aur swaaha hote armaan kahan dikhte hain.

    sateek abhivyakti.

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  14. बेहद सुन्दर रचना.

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  15. ऐसा ही हो रहा है आजकल और इसके पीछे कुछ हाथ तो मातापिता का भी है जो बड़े चाव से बच्चों को बाहर भेजते हैं...दूरदर्शी नहीं होते न.

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  16. एक सार्थक भावपूर्ण रचना...

    नीरज

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  17. waaah....kya likha hain....insaniyat ka parcha bhi kya padh paayenge aise log.

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  18. दिल को छूने वाली रचना ...

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  19. बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...

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  20. जरूर पर्चा पढ़ाउंगा.. पर यह एक अतिगंभीर मुददा ही तो है कि आखिर हमही तो उसे इस तरह बनाते है कि वह जमीन छोड़ आकाश में घर बसा ले, दर्द तो है पर अपना ही बनाया हुआ।

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  21. बहुत ही सुंदर रचना ,बेहतरीन प्रस्तुति,.लाजबाब पंक्तियाँ
    welcome to new post...वाह रे मंहगाई

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  22. धनाढ्य,
    बाल-बच्चों का
    भेजा हुआ,
    बेहिसाब प्यार .
    ऊल-जलूल ,पुराने,
    शरीर से
    कई गुना बड़े-बेढंगे
    कपड़ों का,
    दुःखद सामंजस्य,
    सुदूर........किसी देश में,
    सम्पन्नता की
    परतों में
    लिपटी हुई नस्ल को,
    धिक्कारती.......

    bahut gahari samvedana ke sath ak utkrsht rachana lagi .....badhai Pardhan ji.

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  23. उनके
    धनाढ्य,
    बाल-बच्चों का
    भेजा हुआ,
    बेहिसाब प्यार .
    ऊल-जलूल ,पुराने,
    शरीर से
    कई गुना बड़े-बेढंगे
    कपड़ों का,

    यह सही है मैंने भी इस बात को बहुत बार
    देखा है ! अच्छी रचना ....आभार !

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  24. वर्षों से
    विदेशों में बसे,
    उनके
    धनाढ्य,
    बाल-बच्चों का
    भेजा हुआ,
    बेहिसाब प्यार .
    ऊल-जलूल ,पुराने,
    शरीर से
    कई गुना बड़े-बेढंगे
    कपड़ों का,
    दुःखद सामंजस्य,
    सुदूर........किसी देश में,
    bahut badhiya rachna
    aabhar.......

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  25. नमस्कार मृदुला जी
    बहुत उम्दा पोस्ट . आपकी पोस्ट पर आना हमेशा सुखद अनुभव होता है . पीडी की तकलीफ और समस्या को आपने गहरी से प्रस्तुत किया है .बधाई स्वीकारें .:)

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  26. इंसानियत का,
    कम-से कम
    एक पर्चा,
    ज़रूर
    पढ़ा दीजियेगा..........
    सही कहा आपने।

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  27. आपकी कविता सदा घनी भावों से भरी होती है । आपके पोस्ट पर आना सार्थक सिद्ध हुआ । .मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है ।

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  28. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा प्रस्तुती!

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  29. बेकार है कोशिश उन्हें इंसानियत पढाने की ,हमने ही परवरिश में खताएं की थीं.
    गणतंत्र दिवस हम सभी भारतवासियों को मुबारक हो.

    इलाही वो भी दिन होगा जब अपना राज देखेंगे
    जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमां होगा.

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