क्यूं न निकालूँ....
कोई मसला,कोई हल,
कोई सवाल,कोई जबाब,
पुरानी कहानियों के इतिहास से,
बचपन के हास से,
किशोरावस्था की हलचल से,
युवावस्था की कल-कल से .
यादों की सलवटों को,
खींच-तान कर सीधी करूं,
पढूं ,सुनूं ,सुनाऊँ,
नया उत्साह जगाऊँ,
नयी स्फूर्ति लाऊं.
घुमा लाऊँ अपने-आप को,
किसी पुरानी कविता की
पंक्तियों में ,
किसी पुराने उपन्यास की
सूक्तियों में ,
प्रेमचंद के 'गबन'की
'जालपा' से मिलूँ ,
बच्चन की 'मधुशाला' में
शब्दों को पियूं .
ननिहाल में.....
आम-लीची से लदे,
पेड़ों पर
चढ़ जाऊं,
तार,खजूर,नारियल की
ऊँचाई को
छू आऊँ,
बिना दांत के सिपाहीजी की,
कुटी हुई सुपारी
खा लूं ,
बड़े-बड़े छापों वाली,
देहाती साड़ी की
चुन्नट डालूँ .
धूप में पिघलाकर,
नारियल का तेल
लगाऊं,
लकड़ी की डब्बानुमा
गाड़ी में,
उबड़-खाबड़ रास्तों से
हो आऊँ.
सुनहले-रूपहले
पर्चों को,
लालटेन की रोशनी में
खोलूँ ,
कंडे की कलम से,
डायरी के पन्नों को
रंग लूं .
लकड़ी के चूल्हे पर बनी
रसोई,
फूल-कांसे के बर्तन में
सजाऊँ,
आज के लिए
बस इतना ही.....
कल,
कहीं और से
कुछ और लेकर
आऊँ.
बस इसी में है पूरी जिन्दगी....!
ReplyDeleteकल कुछ और लाएं...
कुछ और सजाएँ जिंदगी...!!
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteइस कविता का स्वर मन को शान्ति पहुंचाता है और एक ऐसी दुनिया का सैर कराता है जिसमें शान्त-सरल-शुद्ध हवा-सा प्रवाह है।
ReplyDeleteकच्ची सी ....सौंधी सी खुशबु आई इस कविता से....
ReplyDeleteकल कुछ और जो लाएंगी वो भी बताइयेगा ज़रूर.....
अनु
हर पल कुछ नया सजाएं ..बहुत सुन्दर..स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई..
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा पढकर.बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteयादों की सिलवटें बहुत सुन्दर हैं... कल जो लायेंगे उसका इंतजार है....
ReplyDeleteक्या बात है ... एक भीनी सी सुगंध लिए यह अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआज के लिए बस इतना ही ... यादों के ढेर में इतना कुछ होता है की रोज इतना भर लाना आसान है ...
ReplyDeleteमोहक रचना ...
बहुत ज़रूरी है जीने और हंसने के लिए
ReplyDeleteमृदुला जी आपने पूरी बातें इतने सहज ढंग से कही की बचा कुछ भी नहीं बहुत ही सुन्दर .अद्भुत मनमोहक
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ...कुछ नया सा
ReplyDeleteवाह ,,, बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteवे क़त्ल होकर कर गये देश को आजाद,
अब कर्म आपका अपने देश को बचाइए!
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,,
RECENT POST...: शहीदों की याद में,,
बहुत बढ़िया,
ReplyDeleteभोजपुरी में कहूँ तो
एकदम हद बा
सुन्दर कविता
ReplyDeleteयादों की सिलवटों को इस अंदाज से खोलना पसंद आया बहुत सुन्दर लिखा है बधाई आपको
ReplyDeleteआज 16/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
ReplyDeleteBeautiful writing and beautiful presentation Mridula ji. Happy Independence Day to you too:)
ReplyDeleteबिना दांत के सिपाहीजी की,
ReplyDeleteकुटी हुई सुपारी
खा लूं ,
बड़े-बड़े छापों वाली,
देहाती साड़ी की
चुन्नट डालूँ .
वाह ....!!
यशवंत जी शुक्रिया जिन्होंने इतनी खूबसूरत रचना से अवगत कराया ....:))
मन की बात को इतनी सादगी से बयां कर देना ही कविता है...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति............घुमा लाऊँ अपने-आप को,
ReplyDeleteकिसी पुरानी कविता की
पंक्तियों में ,.............वाह ....!!
साहित्य के उद्यान में घूम आई हैं .... बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति!
ReplyDeleteबीत न जाएं कहीं
ReplyDeleteआज के स्वर्णिम पल
खंगालने,सहेजने में
कल की स्मृतियों को
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteपहले भी कहा था और आज भी कह रहा हूँ कि आपकी कविता का प्तावाह बहाकर ले जाता है!!
ReplyDeletepadh kar laga...kyun naa main bhi aisi ho jaun :)
ReplyDeletechehre par muskurahat aa gayee...
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