कहते हैं माँ-बाप आजकल......
बड़े होशियार हैं
मेरे बच्चे,
सारे 'पोयम्स' याद हैं इन्हें
'बाई -हार्ट',
'चैम्पियन'हैं 'स्विमिंग' के,
हर बार 'फर्स्ट' आते हैं
'क्लास' में.
'गिटार' बजाते हैं,
'पियानो' बजाते हैं ,
करते हैं
'घुड़सवारी',
छोटी सी उम्र में
शौक रखते हैं 'ब्रिज' का
'शतरंज' का
खेल लेते हैं, खेल
सारी.
नहीं करते वे
इन बातों का ज़िक्र........
घूमते रहते हैं
नंगे पाँव, इधर-उधर
अंदर-बाहर,
जबाब देते हैं
हर बात का,
बदतमीजी से,
उधम मचाकर ,ऊपर की
मंजिल पर,
जीना मुश्किल
कर देते हैं
नीचे वालों का.
दूसरों के घर जाकर,
तोड़-फोड़ मचाकर,
कभी हर चीज छूकर
कभी पानी
गिराकर,
कर देते हैं- नाक में दम,
जहाँ कहीं जाते हैं,
घर में जो
छूने की मनाही हो,
बाहर
उन्हें ही आज़माते हैं.
यह सब देखकर
माँ -बाप को आता है
लाड़,
रहने दो बच्चों,
प्यार से
थपथपाते हैं.
नहीं समझते औरों की
कसमसाहट
जब नई बिछी
कालीन पर,
बच्चे चाय छलकाते हैं,
वे समझते हैं
ये सारी खुराफ़ातें
बच्चों की होशियारी में,
चार चाँद लगाते हैं.
बड़े होशियार हैं
मेरे बच्चे,
सारे 'पोयम्स' याद हैं इन्हें
'बाई -हार्ट',
'चैम्पियन'हैं 'स्विमिंग' के,
हर बार 'फर्स्ट' आते हैं
'क्लास' में.
'गिटार' बजाते हैं,
'पियानो' बजाते हैं ,
करते हैं
'घुड़सवारी',
छोटी सी उम्र में
शौक रखते हैं 'ब्रिज' का
'शतरंज' का
खेल लेते हैं, खेल
सारी.
नहीं करते वे
इन बातों का ज़िक्र........
घूमते रहते हैं
नंगे पाँव, इधर-उधर
अंदर-बाहर,
जबाब देते हैं
हर बात का,
बदतमीजी से,
उधम मचाकर ,ऊपर की
मंजिल पर,
जीना मुश्किल
कर देते हैं
नीचे वालों का.
दूसरों के घर जाकर,
तोड़-फोड़ मचाकर,
कभी हर चीज छूकर
कभी पानी
गिराकर,
कर देते हैं- नाक में दम,
जहाँ कहीं जाते हैं,
घर में जो
छूने की मनाही हो,
बाहर
उन्हें ही आज़माते हैं.
यह सब देखकर
माँ -बाप को आता है
लाड़,
रहने दो बच्चों,
प्यार से
थपथपाते हैं.
नहीं समझते औरों की
कसमसाहट
जब नई बिछी
कालीन पर,
बच्चे चाय छलकाते हैं,
वे समझते हैं
ये सारी खुराफ़ातें
बच्चों की होशियारी में,
चार चाँद लगाते हैं.
यहीं से शुरू हो जाती है व्यवहार में अराजकता आनी ... सार्थक विचार
ReplyDeleteयही सब इन्हें लापरवाह बना देता है, संस्कार घर - परिवार से ही आते हैं, बच्चे परिवार का आईना होते हैं...
ReplyDeleteप्यार से
ReplyDeleteथपथपाते हैं.
नहीं समझते औरों की
कसमसाहट
जब नई बिछी
कालीन पर,
बच्चे चाय छलकाते हैं,
वे समझते हैं
ये सारी खुराफ़ातें
बच्चों की होशियारी में,
चार चाँद लगाते हैं.
माँ बाप को आइना दिखाती और सच को बयान करती पोस्ट
बस ..यही संस्कार तो लुप्त होते जा रहे हैं बच्चों में..केवल स्मार्टनेस ही बची है.
ReplyDeleteइसी उम्र में बच्चों को अच्छे संस्कारों को देने आवश्कता है,,,,,
ReplyDelete========================================
recent post : नववर्ष की बधाई
सच को बयान करती पोस्ट
ReplyDeleteसटीक रचना
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
मृदुला जी,
ReplyDeleteयाद है न वो कहानी जहाँ अदालत में फाँसी की सज़ा मिलने पर एक लड़का अपनी अंतिम इच्छा यह बताता है कि उसे उसकी माँ के कान में कुछ कहना है. और माँ के कान में कहने के बजाए उसके कान काट लेता है यह कहते हुए कि अगर तुमने एक पेन्सिल चुराने पर थप्पड़ मारा होता तो आज मैं फाँसी के फंदे तक नहीं पहुंचता.
माँ बाप की आँखें खोलने वाली कविता!!
सही कहा है ...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
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