Monday, June 13, 2022

शाख-ए-गुल से..

 शाख-ए-गुल से 

ये मैंने 

कहा एक दिन..

अपनी खुशबू तो दे दो 

मुझे भी जरा 

कि..लुटाऊँगी मैं भी 

यहाँ से वहाँ ..

कुछ झिझकते हुये

उसने हामी भरी 

फिर कहा-

मित्र , लेकिन..

सिखा दो मुझे पहले 

अपनी तरह 

तुम ये चलना 

मुझे भी 

यहाँ से वहाँ ..

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 15 जून 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सच .... पेड़ पौधे एक ही जगह रह कर खुशबू के माध्यम से दूर दूर तक पहुँच जाते हैं , उनका भी मन करता होगा न चलने फिरने का । मन को छूती रचना ।।

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  3. Excellent post. Keep posting such kind of info on your blog.

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