ई दिल्ली छैक......
एतय,
जगह-जगह
इतिहासक पृष्ठ
खुलल भेटत,
चाँदनी चौक,जामा मस्जिद,
लाल किला,
जंतर-मंतर,राजघाट,
मजनूं क टिला,
अमीर खुसरो,हज़रत निजामुद्दीन क
दरगाह,
बिड़ला मंदिर, हुमायूँ टुम्ब,
कुतुब-मीनार,
वाह.....
एतय,
प्रचुर मात्रा में
भेटत,
राजनीतिक चक्रव्यूह,
अभिजात्य वर्ग,
अफसरशाही,
दर्जे-दर्जे 'मिडिल क्लास'
सभ सँ ऊपर
तानाशाही.
सभ......गुरूर सँ
मातल.
एहिठाम,
गल्लल केरा आ
पच्चल सेव क ठेलावाला
तक.....
एहन
ऐंठल भेटत.....
जे रस्सी, सेहो
लजा क
नुका जैतिह.
ई दिल्ली छैक......
तरहक-तरहक क्रीड़ा-कौतुक,
जिज्ञासा,
आंखि फाईट जायेत,
देखि क
नाना प्रकारक
तमाशा.
एक कविता में पूरी दिल्ली समां गई बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteJo thoda bahut samajhi wo achha laga!
ReplyDeleteमैथली में अच्छी प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteRECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का
ये है दिल्ली नगरिया तू देख बबुवा...
ReplyDeleteदिल्ली को परिभाषित करने के लिए शानदार प्रयास हेतु बधाई |
ReplyDeleteदिल्ली दर्शन करवा दिया आपने
ReplyDeleteक्या मैथिली सबको समझ आई होगी ?
बेहद सुन्दर ढंग से आपने दिल्ली को परिभाषित किया है, बहुत-२ बधाई
ReplyDeleteपूरी दिल्ली का शानदार वर्णन शमा बाँध दिया आपने इतिहास से वर्तमान और सामाजिक सन्दर्भ को सीधे जोड़कर भाव अभिभूत कर दिया .बहुत बधाई
ReplyDeleteमृदुला जी,
ReplyDeleteकभी कभी तो जी में आता है कि आपकी मैथिली कविताओं का अनुवाद मैं खुद करूँ.. दरअसल हिन्दी से अलग किसी भी भाषा में दिल को छूने वाली और प्रभावित करने वाली कविताओं को पढकर ऐसा ही लगता है..और आपकी कवितायें.. शानदार!!
दिल्ली क विशेषताक अहां ई कविता में बड्ड नीक जंका बांधि क ओकर प्रमुख गुण के पाठक के सामने प्रस्तुत कए देलौं। (मैथिली लिख गया तो, बाक़ी ग़लती आप सुधार दें।)
ReplyDeleteमेरी टिप्पणी को स्पैम से आज़ाद करें।
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