पिछले पोस्ट में एक आम गृहणी के आम दिन की बातें थीं.......जो लगी रहती है,
लोगों की आवा-जाही में,
कुकर में और कड़ाही में,
पंखों की साफ़-सफाई में,
कूड़ेवाले से लड़ाई में........और आज प्रस्तुत है,गृहणी के एक विशिष्ट वर्ग के दिनचर्या की झलक.......
रेशमी 'गाउन' में
मछली सी चमकती,
लहरों सी मचलती,हवा सी
सरकती,
निकलती है,शयन-कच्छ से.....
मुस्कुराती,लहराती,
बलखाती,
बैठ जाती है,गद्दीदार
कुर्सी पर,
कितनी शांत दिखती है,
न कोई जल्दी,न कोई
भागम-भाग,
गुनगुनाती है......कोई
नया राग.
सुनकर 'मैडम' के पैरों की
झनकार,
आ जाते हैं
खिदमतगार.....सोचते हुए,
आज क्या हुक्म करेंगी
सरकार.
'गुड-मौर्निंग' कहकर
संकेत देते हैं
उपस्थिति की,
इंतज़ार में, फ़रमान
जारी होने की.....और
फ़रमान भी कुछ
ऐसा-वैसा नहीं,आप
सुनिए तो सही.....
'अ' 'ग्लास' 'ऑफ़' 'वाटर',
'विथ' 'स्क़ुईज' 'ऑफ़' 'लेमन'.
अरे,
एक साधारण से
निम्बू-पानी के गिलास की
हैसियत,
कहाँ-से-कहाँ
पहुँच गई,
मैं तो
हैरान रह गई.....पर
मेरी क्या औकाद,
थोड़ी देर बाद,
आठ-दस इंच लम्बी और
तीन-चार इंच 'डायमीटर' की
गोलाई वाली,
नक्काशीदार काँच के 'ग्लास' में,
'जूस' का
आगमन हुआ,
छोटे-बड़े घूँटों में 'सिप' कर
'जिम' की ओर
गमन हुआ.
घंटा वहाँ बिताकर,
घर आकर,
फल-वल खाकर,
'ब्यूटी-केयर' की शुरुआत हुई......
कुछ फल,कुछ सलाद
आँखों,गालों पर चिपकाये गए,
कुछ तेल-फुलेल
नाखूनों पर,लगाये गए,
डुबोया गया पैरों को
पानी में,
भौहें तराशी गयीं,कुछ और
बारीकियां
'एक्शन' में लायी गयीं......और
'सीन' बदल गया,
नहाने का वख्त जो हो गया.
कल-कारखाने जैसे
यंत्रों से
सुसज्जित,
स्नान -गृह में,
विभिन्न प्रकार के
फव्वारों और झरनों का समन्वय,
समय की लाचारी नहीं
तो ......'टाइम' 'नो' 'बार',
बस......लेती रहीं बौछार.....
और...... अपने समय के
अनुसार,
तरोताज़ा,
खुशबू उड़ाती,
फूलों को शर्माती,
'हाई''हील' के 'सैंडल'
खटखटाती,
'किटी-पार्टी' में जाकर
खाती,पीती,उड़ाती,
थककर
घर आती,
बच्चों की सरसरी सी
जानकारी,
'आया' से पाकर,
'ब्यूटी-स्लीप' में
सुस्ताती ,
बेचारी.......
शाम तक ही जग पाती.
अब कहीं थोड़ी सी
राहत.....
कोई 'शापिंग',कोई
'मूवी',
कोई नाटक,कोई 'ड्रामा',
कोई 'थियेटर' कोई
'पिक्चर',
कितना 'बिज़ी' रहती है.....
उस पर ये 'पार्टियाँ',
ये शादियाँ,
ये 'काकटेल',
घर,बाहर,'क्लब'
'होटेल',
हर जगह के लिए
अलग-अलग कपड़े,
अलग-अलग ज़ेवर,
अलग-अलग 'मेक-अप'.
नए से नए की होड़,
मेहनत करती है
पुरजोड़,
तब कहीं जमती है
'सोसाइटी' में धाक,
ये विशिष्ट वर्ग की
गृहणी है,
हमेशा
ऊँचा रखती है
नाक.
सुन्दर...
ReplyDeleteविवरण और क्या......!!
... :))
ये वाला नहीं मिला इस जनम में .... :) पर खुश हैं जब बच्चे कहते हैं, माँ तुम्हारे हाथ का खाना, कपड़े में तुम्हारी पसंद ... :)
ReplyDeleteदिनचर्या की सुन्दर झलक.....
ReplyDeleteआपने हकीकत बयान किया किसी को कटाक्ष भी लग सकता है।:)
ReplyDeletebahut badhiya rachna ...:))
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मजेदार...
ReplyDeleteप्रस्तुतीकरण लाजवाब...
:-)
सुंदर...बहुत सटीक वर्णन !!
ReplyDeleteये विशिष्ट वर्ग की
ReplyDeleteगृहणी है,
हमेशा
ऊँचा रखती है
नाक.
बहुत सही वर्णन ।
ये विशिष्ट वर्ग की
ReplyDeleteगृहणी है,
हमेशा
ऊँचा रखती है
नाक.
लोगों की आवा-जाही में,
कुकर में और कड़ाही में,
पंखों की साफ़-सफाई में,
कूड़ेवाले से लड़ाई में.
मृदुला जी आपने इतनी खूबसूरती से भारतीयता और पाश्चात्य रंगों का विश्लेषण किया है क्या कहने सुबह का मज़ा आ गया . आपके कथन में माटी की सौंधी महक पहले ही मिली सादर नमन . शुभ प्रभात .
बेहतरीन वर्णन सुन्दर रचना
ReplyDeletehigh profile life style का खूबसूरत वर्णन ...जहाँ वक्त की कोई कमी नहीं है
ReplyDeletewaah! kya vrnan kiya hai...kaaash bas ek aisa din...:-)
ReplyDeletekukkar kadchhi wali to ek bar ko annpurna kehlayegi lekin ye high profile kya kahlayengi...koi shabd dete hue bhi soch aati hai .
ReplyDeletebahut sateek varnan kiya hai.
क्या बात है.. कितने शेड्स हैं आपकी इन दोनों कविताओं को एक साथ पढने में... कितने रूप नारी के.. और कविता तो ऐसे लग रही है मानो किसी भावनाओं के पहाड़ से शब्दों की सरिता बह निकली हो!!
ReplyDeleteप्रभावी रचना ... लाजवाब
ReplyDeleteवाह वाह क्या चित्र खींचा है मृदुला जी विशिष्ट वर्ग की नारी का जी करता है आपके हाथ और कलम चूम लूँ रचना पढने में देर हो गई क्षमा चाहती हूँ इससे पहले वाली पढने जा रही हूँ अब
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